ग़ज़ल

   झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं

झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं, हर घड़ी तुझको ही सोचूँ, ख़ुद से भी खो जाऊँ मैं! तेरे लब हँसते मिलें तो दिल मेरा खिलने लगे, तू जो ख़ामोशी से बोले, दर्द भी सह जाऊँ मैं। तेरे केशों की घटाएँ जब भी बिखरें सामने, बादलों को ओढ़ कर फिर, चाँद-सा दिख जाऊँ मैं। […]

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ग़ज़ल

ग़ज़ल- नही होता तुम्हारे बिन बसर अपना

  नहीं  होता   तुम्हारे   बिन  बसर अपना तुम्हारे दिल  को ही  माना है घर अपना यही  बस  पूछता  हूँ   हर  मुसाफ़िर  से कि कितना रह गया बाक़ी सफर अपना दगा   करना   नहीं   फ़ितरत  हमारी  में हमें     मालूम   है   यारो    हुनर  अपना पुरानी    याद    जब    कोई   सताती  है बहुत  ही   याद   आता   है  नगर अपना वही  महफ़िल   वही  रौनक  मुझे लगता अग़र  वो  साथ  है  तो  हर  बशर अपना नहीं  फिर  ज़िन्दगी  यह  ज़िन्दगी लगती चला  जाये अग़र  कोई  छोड़ कर अपना सुनाते  हाल  दिल   का  यह  किसे ‘राही’ यहां    लगता   नहीं   कोई   मग़र अपना     ~ रसाल सिंह ‘राही’

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ग़ज़ल

गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं

गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं। आह भरता मगर गुनगुनाता नहीं।। खेत में कंकरीटों की उगती फसल । धान गेहूं कोई अब उगाता नहीं।। शब्द सोहर के जाने कहां खो गए । अब ये बिरहा पराती सुनाता नहीं।। अजनबी बन गए गांव के लोग भी। कोई भी अपने सर को झुकाता नहीं।। भावनाएं अहिल्या हैं

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ग़ज़ल
A solitary silhouette of a man in a jacket gazing at a lake during a peaceful sunset, creating a serene atmosphere.

कारे-जहाँ

कारे-जहाँ1 आजकल इस तरह बन गये, ज़हीन2 ख़तरे में, इबलीस3 मोहतात4 बन गये! ख़ुदा ने बनाया हमें उन्वान5 देकर – “इंसान”, दैर-ओ-काबा6 बनाकर हम क्या से क्या बन गये! सहीफ़ा7 जो दिया नेक बंदे को ख़ुदा ने, जनाब खुद मसीहा, ईबादत के मरकज़8 बन गये! ख़ुदा ही रहा मेरा मुस्तहक9 अजल10 से, ये तो दुनिया

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ग़ज़ल
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डा. ज़ियाउर रहमान जाफ़री की 10 ग़ज़लें

ग़ज़लें ——— -डा. ज़ियाउर रहमान जाफ़री ( 1) तुम्हारे सब गिले अच्छे नहीं हैं मुकम्मल तज़किरे अच्छे नहीं हैं बता कर सब हक़ीक़त रख रहे हैं कहीं से आईने अच्छे नहीं हैं शिकायत मुझसे ही होती रही है मगर वो भी बड़े अच्छे नहीं हैं अंधेरों की रही है बस शिकायत जो जलते हैं दिये

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ग़ज़ल

दास्तान-ए-एहबाब

दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है

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ग़ज़ल

डा.नरेश कुमार ‘सागर’ की ग़ज़ल – खामोशी अब अच्छी नहीं सरकार जी..?

आखिर कब तक, शोक मनाऊं मुझको ये बतला देना ? एक बार ज़ालिम चेहरों को, हमको भी दिखला देना।। पहले कुछ पूछेंगे उनसे, मानवता दिख लाएंगे। सच ना बोला गर वो कातिल, टुकड़ों में बट बाएंगे।।   आखिर कब तक खूनी खेल ये, घाटी में खेला जाएगा ? मेरे घर में घर वालों को ,कब

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ग़ज़ल

चांद रात

हर तरफ थी रौशनी हर तरफ था उजाला एक  मेरे ही  घर अंधेरा  था चांद रात को गुल खिल गई थी कली मुस्करा रही थी एक मैं ही उदास  बैठा था चांद रात को मैं तुम्हारी जिंदगी की सलामती के लिए बाबर तुम्हारा सदाका  निकाल रहा था चांद रात को तेरे बगैर कैसी होगी इस

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ग़ज़ल
रसाल सिंह 'राही'

ग़ज़ल

ग़ज़ल.. कि उसने बात दिल की ना कही होती हमें भी तो मुहब्बत ही नहीं होती अग़र मैं ज़िन्दगी को ज़िन्दगी लिखता नहीं मुझ से खफा यह ज़िन्दगी होती कभी होता नहीं यह दिल खफ़ा उससे हमारी बात उसने ग़र सुनी होती हमें भाते नहीं हमको सताते जो नहीं उनसे हमें अब दिल लगी होती

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