May 2025

‘वी वॉक आफ एम्पावरमेंट’ की प्रस्तुति में ओपन माइक का शानदार आयोजन

मुंबई। 25 मई को गोरगांव पश्चिम स्थित ‘रासा द स्टेज’ में रविवार की शाम एक बेहद खूबसूरत और यादगार ओपन माइक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन ‘वी वॉक आफ एम्पावरमेंट’ संस्था द्वारा किया गया, जिसकी संस्थापक और मुख्य आयोजक नसरीन मलिक हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य उभरते कलाकारों को मंच देना और […]

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साहित्य समाचार

ऑपरेशन सिंदूर – जब राष्ट्र पहले है, राजनीति बाद में होनी चाहिए

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान भारत सरकार द्वारा चलाया गया “ऑपरेशन सिंदूर” सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था — “भारत अब चुप नहीं बैठेगा”।जहां एक ओर हमारी सेना सीमा पर बहादुरी से लड़ रही थी, वहीं भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, दुनिया को

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आलेख

मुश्किलों से भरी है जीवन,दिखती किरणें हैं उम्मीदों से भरी

है आंसुओं की सैलाब,मेरे इन आँखों में छिपी हुईं, पर साथ उसके, उम्मीद भरी किरण भी छुपी हुई! इरादे बादलों से परे,और निकलेंगी किरणें सुनहरी, जीवन के इन्हीं मुश्किलों में, सीख होती छुपी हुई! पल पल पग पग होगी सफ़र, यूँ कांटों से भरी हुई, कर कोशिश बढ़ा जो भी,सपने उसके साकार हुई! उठ चलो

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कविता

बाज़ार

बाज़ार हमें खरीदता है या हम बाज़ार को! राहगीर भी भटकने लगे चकाचौंध को देख कर अब आदमी की नीलामी होती है बेधड़क जिस्म भी चंद पैसों में बिकने लगे हैं बाज़ार भी आदमी की देन है फिर आदमी ही आदमी को बेचने लगे गाँव को मिटा कर शहर में तब्दील किया अब घरों को

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कविता

है पीकर भी न बहके यारों,उसके लिए ये संसार नहीं

है पीकर भी न बहके यारों, उसके लिए ये संसार नहीं… हृदय नहीं पत्थर दिल है,जिसको मदिरा से प्यार नहीं, है पीकर भी न बहके यारों,उसके ये लिए संसार नहीं! हो ग़म किसी के जाने का,है साथ तेरे बोतल ही सही, कभी हाथ हो माशूका का,कभी हाथ बोतल ही सही! कोई जो पूछे तुमसे, हर

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कविता

हो इजहारे दिल की बात,आंखों ही आंखों में हम करें…

हो इजहारे दिल की बात,आंखों ही आंखों में हम करें… है ख्वाहिश चलें बाग़ में,डाल बाहों में बांह डालकर के, कुछ सफ़र ही सही, साथ चलें हम होकर एक दूजे के! हो चंद बातें ही सही प्यार की, साथ गुजार कर तुमसे, हो इजहारे दिल की बात,आंखों ही आंखों में हम करें! कुछ यूँ झील

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कविता

बन मिसाल लोगों की,फ़िर दुनिया छोड़ने की सोच.

बन मिसाल लोगों की,फ़िर दुनिया छोड़ने की सोच. खुला हुआ नीला आसमां,ऊँची उड़ान भरने की सोच, है अंधेरा हर तरफ़,दूर तक रौशनी बिखेरनी की सोच! तेरे नज़रों से झलक रही, उम्मीदों से भरी हुई किरणें, उन बुलंदियों तक पहुँच, नीले आसमां छूने की सोच! नित नए अरमान,रंगीन सपनों को दिखा रही दुनिया, है चमचमाती चाँद

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कविता

 हो ग़र आखरी सांस मेरी,बस सांस रुके तेरी बाहों में.

 हो ग़र आखरी सांस मेरी,बस सांस रुके तेरी बाहों में. है ख्वाहिश चलें बाग़ में,डाल हाथ में हाथ एक दूजे के, मान इसे सफ़र,संग कुछ कदम चलो हमसफ़र बन के! हो चंद बातें ही सही प्यार की,संग संग रह कर तुम्हारे, हो इजहारे दिल की बात,यूँ आंखों ही आंखों में हमारे! कुछ यूँ झील सी आँखों

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कविता

माॅ

माँ का रूप – राम और कृष्ण की जननी माँ तू साक्षात् करुणा की मूरत, तेरे आँचल में बसी है सृष्टि की सूरत। जैसे यशोदा ने कृष्ण को झूला झुलाया, वैसे ही तूने हर दुःख को मुस्कुरा कर भुलाया। तेरे बिना राम वनवास भीअधूरा, कौशल्या के आँचल ने दिया था धैर्य का साथ पूरा। जन्म

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कविता

भोर का सूरज

भोर का सूरज मुझे पुकारे दूर हो जा ये रात के अंधियारे बहुत हुई ये तानाशाही अब ना चलेगी तेरी मनमानी मै संघर्ष पथ बढ़ चुकी हु तूफानों से टकराना सीख चुकी हु आते जाते है साएं ये गम के मै इनसे उभरना सीख चुकी हु भोर का सूरज मुझे पुकारे दूर हो जा ये

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कविता

नया मोड़

*नया मोड़* —————————- मन में नयी आगाज़ हुई नए भावों का आगमन हुआ सुसंस्कृत शब्दों का गठजोड़ हुआ पंकील विचारों का परिष्कार हुआ व्यवहार में चरित्र का वास हुआ बुद्धि में विवेक का समन्वय हुआ उदासीनता से रागात्मक वृत्ति हुई कोलाहल में शंखनाद हुआ जड़ता से चेतन हुआ पूर्णिमा दीदी का सान्निध्य मिला तो कविता

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कविता

माँ भारती की पुकार

फिर बजी है रणभेरी, हाथों में ले लो तलवार दुश्मन की सीमा में घुसके करना होगा संहार सरहद के कोने कोने, देशप्रेम का भाव जगाएं भले शहीद होके भी मरघटों का शृंगार बन जाएं संकट के बादल छाए, समर की बेला मतवाली शोणित का उबाल देखो, आँखों में छाई है लाली पाक के नापाक इरादे,

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कविता

मोदी और जोगी

मोदी जी को लहर समझो जोगी जी को कहर बिन मतलब की कोई वो बात नहीं करते जो समझा मोदी जी को जो समझा जोगी जो को वो सब कुछ समझ गया मोदी जी जोगी जी पर हम सब हिंदुस्तानियों को गर्व है मोदी जी हमारे त्योहार हैं जोगी जी हमारे पर्व है एक दूजे

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कविता

माँ का आंचल छोड़ कर युद्ध भूमि में उतरे हैं

माँ का आंचल छोड़ कर युद्ध भूमि में उतरे है है जाबाज सिपाही देश के देश पे कुर्बान होने निकले है राखी,सिंदूर, कंधा, और नन्ही नन्ही उंगलियां छोड़ गांव की गालियां निकले है है बुलावा भारत माता का कहकर देश की शान में निकले हैं माँ का आंचल छोड़ कर युद्ध भूमि में उतरे हैं

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कविता

सिन्दूर (ऑपरेशन सिंदूर)

चुटकी भर सिन्दूर की, मांग बड़ी है आज। ऑपरेशन सिन्दूर से , बची हमारी लाज।। शौर्य हमारे सैनिकों का, देख रहा संसार I नेतृत्व हमारा है सबल,कूच-कूच अब मार I चुटकी भर सिन्दूर की ,कीमत दिया बताय। सिंह बना गीदड़ सुनो, घुसा मांद में जाय।। इस पीले सिन्दूर की, महिमा बड़ी अपार। खींच पती को

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कविता

ऑपरेशन सिंदूर

आज लहूं देश का खोल रहा पहलगाम की घटना से, अब ना रुकेंगे घुसकर मारेंगें तेरे ही घर हथियारों से। काटेंगे और कुचलेंगें अब तुझको हम अपनें पाॅंवो से, ऐसा ताबीज़ कर देंगे बचके रहना हम पहरेदारों से।। कर देंगे अब ध्वस्त ठिकाने हिजबुल जैश लश्करों के, ऑपरेशन सिंदूर चलाकर देंगे ज़वाब तुम हत्यारों के।

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कविता

तेरे बिना तो माँ, अधूरा ये जहाँ है…

तेरे बिना तो माँ, अधूरा ये जहाँ है… माँ, तेरी यादों में बस जाऊँ , माँ, तेरी ऑचल में छिप जाऊँ… है पुकारती तेरी यादें मुझे इस कदर, हूँ डूब जाती, तेरी बातों में अक्सर मैं माँ, तू ही बरकत, तू ही मन्नत, तू ही मेरी दुआ है, तेरे बिना तो माँ, अधूरा ये जहाँ

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कविता

   झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं

झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं, हर घड़ी तुझको ही सोचूँ, ख़ुद से भी खो जाऊँ मैं! तेरे लब हँसते मिलें तो दिल मेरा खिलने लगे, तू जो ख़ामोशी से बोले, दर्द भी सह जाऊँ मैं। तेरे केशों की घटाएँ जब भी बिखरें सामने, बादलों को ओढ़ कर फिर, चाँद-सा दिख जाऊँ मैं।

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ग़ज़ल

हमला किया पहले पाकिस्तान पहलगाम में

हमला किया पहले पाकिस्तान ने पहलगाम में , 5 सशस्त्र आतंकियों ने 26 टूरिस्टों को मारे गए , तब भारत ने जवाब दिया ‘ऑपरेशन सिन्दूर ‘ से , ‘ऑपरेशन सिन्दूर ‘ द्वारा पाक के नौ आतंक के , ठिकानों का भारत ने किया मटियामेट , फिर भी पाकिस्तान का अकर खत्म हुआ नहीं , हमला

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कविता

अभी तो आगाज हुआ है

ऑपरेशन सिंदूर अभी तो शंखनाद हुआ है युद्ध अभी बाकी है अभी धरा स्वरूप सिंदूरी सिंदूर का लिया प्रतिशोध ही अभी तो राम भक्त की सेना से बस पहुंचे हनुमान ही तो ध्वस्त कर दिए तुम्हारे सारे नापाक इरादे ,ठिकाने और साए आतंक के तो सुन लो ये पाक वालो जो निकल पड़े रामभक्त और

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कविता

तेरी ऑचल में छिप जाऊं मां,

  तेरी यादों में बस जाऊं, तेरी ऑचल में छिप जाऊं मां, हूँ पुकारती तुझको, तेरे यादों में ही खो जाती हूँ मै मां! हां तेरी बातों यादों में ही खो जाती हूँ मै मां……   तू ही बरकत, तू ही मन्नत, है तेरे बिना अधूरा जहाॅ हैं, ये कोई रिश्ता,एहसास ही नहीं,मेरी हर सांस

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कविता

ऑपरेशन सिन्दूर ।operation sindoor

  हिन्दोस्तान  की  ताकत  है ऑपरेशन सिन्दूर जिसने   दुश्मन   के  इरादे  कर   दिये  हैं चूर पूछ   रहा  दहशतगर्दो   से  ऑपरेशन सिन्दूर कौन   पहुँचा  है   जन्नत   किसको  मिली हुर   भारत  का   यह  भरतीय   ऑपरेशन  सिन्दूर गुटने टेकने के लिए  कर देगा उनको मजबूर पहलगाम का बदला ले रहा ऑपरेशन सिन्दूर अपनो  को जब अपनो से किया था तुमने दूर   हाल बेहाल कर गया उनका ऑपरेशन सिन्दूर उड़ गए  होश  उनके  उड़  गया  चेहरे  का नूर लहू से रंगी धरती को इंसाफ दिला रहा सिन्दूर उन बेगुनाहों की बद्दुआएं लगेगी

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कविता

  है बस चल पड़ते सभी, मंज़िल की सभी को तलाश है….

  हैं चारों तरफ घिरे पानी से, सबको पानी की तलाश है, है ज़िन्दगी, फिर भी ज़िन्दगी में ज़िन्दगी की तलाश है! अथाह सागर सी गहराई देखी, जीवन में मैनें भी यारों, है उस पार जाना मुझे, है लगे ये भी कोई जिंदगानी है!   हर तरफ़ है भीड़, न जानें ये सफ़र कहां से कहां

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कविता

कर सामना हर चुनौती का मैं, बस आगे ही बढ़ता रहा…

  हुए ज़ुल्म इतने मुझ पर, फिर भी यारों मै अडिग रहा, चलता रहा मुश्किलों का दौर, मैं आगे ही  बढ़ता रहा! है देखा मैंने जाना भी, उनके उन हर अरमानों को भी, यूँ परेशानियों  को देख मेरे,वो मुस्कुराता रहा “प्रताप”,   रुक रुक कर मेरे राह पर,है बस कांटे ही बिछाता रहा, सब मुश्किलों का मुकाबला

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कविता

लहू खौल रहा सबका, अब युद्ध आर-पार का होगा….

  हो ऐसी ललकार हर तरफ़ से, अब बदला लेना होगा, शस्त्र उठा हाथों में यारों, दुश्मन को ललकारना होगा! सरहद की माटी पुकारे, कब तक जुल्म सहना  होगा, उठे दिलों में शौर्य-ज्योति,इस अंधेरे को हटाना होगा!   हैं तलवारें भी कहने लगी,हम पर धार नई कब होगी, तैयार हैं बंदूकें सारी,अब हिसाब बराबर करनी होगी!

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कविता

ग़ज़ल- नही होता तुम्हारे बिन बसर अपना

  नहीं  होता   तुम्हारे   बिन  बसर अपना तुम्हारे दिल  को ही  माना है घर अपना यही  बस  पूछता  हूँ   हर  मुसाफ़िर  से कि कितना रह गया बाक़ी सफर अपना दगा   करना   नहीं   फ़ितरत  हमारी  में हमें     मालूम   है   यारो    हुनर  अपना पुरानी    याद    जब    कोई   सताती  है बहुत  ही   याद   आता   है  नगर अपना वही  महफ़िल   वही  रौनक  मुझे लगता अग़र  वो  साथ  है  तो  हर  बशर अपना नहीं  फिर  ज़िन्दगी  यह  ज़िन्दगी लगती चला  जाये अग़र  कोई  छोड़ कर अपना सुनाते  हाल  दिल   का  यह  किसे ‘राही’ यहां    लगता   नहीं   कोई   मग़र अपना     ~ रसाल सिंह ‘राही’

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ग़ज़ल

बेकरार रहता है ये दिल

बेकरार रहता है ये दिल अक़्सर कभी उसको देखने के लिए तो कभी उसको सुनने के लिए बिन उसके मन को कहीं पर भी अब सुकूँ नहीं मिलता जो साये की तरह साथ-साथ चलता रहता है मेरे और फिर मैं भी कभी उसका दामन नहीं छोड़ता हूँ अब दर्दे दिल की दवा भी वही और

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कविता

काव्यसृजन के मंच से पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा मारे गये निर्दोष भारतियों को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

मुम्बई. दिनाॅंक-४-५-२०२५ दिन रविवार को श्रीराम जानकी मंदिर बद्रीधाम नब्बे फिट रोड लालबहादुर शास्त्री नगर साकीनाका मुम्बई में रा.सा.सा.व सांस्कृतिक न्यास काव्यसृजन परिवार ने पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा निर्दयतापूर्वक मारे गये निर्दोष भारतियों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।तदुपरांत उपस्थित कवियों ने आतंकवादियों को और उनके समर्थकों को अपनी ओजपूर्ण रचनाओं से खूब खरी-खोटी सुनाई।

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साहित्य समाचार

देश रत्न अवॉर्ड २०२५ की ख़ुशी में सैनिक कवि उदय का हुआ भव्य स्वागत

देश सेवा के साथ-साथ साहित्य गतिविधियों में अपनी विशेष पहचान बनानें पर (सैनिक कवि) हेड कांस्टेबल गणपत लाल उदय को २९ अप्रेल २०२५ दूरदर्शन भवन, कमानी ऑडिटोरियम में देश रत्न अवॉर्ड २०२५ से नवाजा गया। इस खुशी में बटालियन (कमांडेन्ट) श्री अनिल कुमार, (सीएमओ) राकेश कुमार, (द्वितीय कमान अधिकारी) आलोक कुमार, (द्वितीय कमान अधिकारी) अभिराम

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साहित्य समाचार

है बदली सरकार, अब किसी की खैर नहीं

चलो सब भाग चले, सरकार को छोड़, होगा आसान हमारा गुजारा,है लगता नहीं, ये ख़बर फैल रही, हर तरफ़ मेरे यारों, है बदली सरकार,अब किसी की खैर नहीं, जो लूट लिए,और किया आनंद हमनें, ग़र जांच हुआ,कोई साथ अपना देगा नहीं, सुन लो मेरे साथी, निकल लो अब भी, है सरकार के मंसूबे,लगते अब ठीक

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कविता

कुछ जुगनू जंगल में छोड़ आते हैं..

हंसना हंसाना ही है जिंदगी, जीने का मज़ा लीजिए, सोचने वाले बहुत तुम पर, उन पर ही छोड़ आते हैं! छोटी सी एक मुलाकात,बन जाती हर पल की यादें, यूँ मुलाक़ात उसे अजनबी समझ,चलो कर आते हैं! जो आज साथ हम सभी, कल क्या होगा पता नहीं, भुला सब दुश्मनी,चलो अपनों से गले मिल आते

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कविता

ख्याति प्राप्त गणपतलाल उदय देश रत्न अवॉर्ड 2025 से हुए अलंकृत

 अरांई अजमेर राजस्थान के ख्यातिनाम सैनिक कवि गणपत लाल उदय को देश सेवा के साथ-साथ उत्कृष्ट लेखन कार्य एवं सफलतम रचनाकार के लिए देश रत्न अवॉर्ड 2025 से अलंकृत किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन पर्यटन विभाग जम्मू-कश्मीर सरकार, द भारत न्यूज और भारती युवा वेलफेयर एसोसिएशन के द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप

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