मै नन्ही सी हु एक गुड़िया कांच सी बिखरी हुई एक गुड़िया
मैं नन्ही सी हु एक गुड़िया नाम दे दो मुझको तुम चाहे रानी, बानी चाहे तो मुनिया नासमझ सी नन्ही सी गुड़िया दुनियादारी से दूर ये गुड़िया मीठी सी चाशनी में घोल कर पिलाई थी जिसे जहर की पुड़िया कहानी हुई शुरु वहां से जहां होती है विश्वाश की डोरी तनिक भी आभास नहीं था […]
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कविता