सुबह के तक़रीबन दस बज रहे थे। लगभग अस्सी वर्षीय दादी बरामदे में बैठी पक्की सड़क की तरफ निरंतर देख रही थीं। सड़क पर आते-जाते लोग उन्हें परछाई की तरह दिखाई दे रहे थे। आज सुबह ही उनके छोटे पोते ने उनका चश्मा तोड़ दिया था।
अभी कुछ ही देर हुई थी कि सड़क पर उन्हें शोर सुनाई देने लगा। उन्होंने आँखों पर ज़ोर दिया, किन्तु सब धुंधला था। कुछ साफ़ दिखाई नहीं दिया, बस परछाई की तरह हिलते हाथ और पैर दिख रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे बिना सिर वाले आदमियों का हुजूम जा रहा हो।
“विवेक बेटा, ज़रा इधर आना।”
उन्होंने अपने बड़े पोते विवेक को आवाज़ लगाई।
“हाँ दादी जी, बोलिए।”
विवेक उनके पास आकर बैठ गया।
“देख तो, सड़क पर आदमियों का हुजूम जा रहा है क्या? मेरा चश्मा टूट गया है न, इसलिए साफ़ दिखाई नहीं दे रहा।”
“हाँ दादी जी, शहर में इनके बिरादरी के एक नेता को पुलिस ने हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया है। उसे छुड़ाने और धरना-प्रदर्शन करने के लिए ये लोग पैदल ही शहर जा रहे हैं।”
“लेकिन बेटा, मुझे तो इन लोगों के सिर ही दिखाई नहीं दे रहे, शायद चश्मा टूट जाने की वजह से!”
“पर दादी जी, बिना चश्मे के ही आपको सत्य दिखाई दे रहा है। सचमुच इनके सिर नहीं हैं। अगर होते, तो कानून को अपना काम करने देते, ऐसे चिल्लाते हुए सड़क जाम नहीं करते।”
फिर दादी ने कोई सवाल नहीं किया।
पता – बिनोद कुमार सिंह
बोधाछापर,गोपालगंज बिहार- 841503