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सारे जग के सच्चे बच्चे

सारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के […]

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जीवन पथ

जीवन की परिभाषा सुन | आँखे हुई नम ,छलकी जलधारा || पग के कंटक छू कर | मन में एक आस भर आई || न विचलित हो पाऊ कभी मैं | पग पग संभल जाऊ चलू मैं एक नई डगर || दूर बादलो की छाँव में | देखूँ सूरज की उजली किरण || न ठंडी

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पुस्तक और हम

पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर

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चाहत के मोती

कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं

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प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो

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इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

कवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले

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आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में

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प्रतीक्षा

तेरी प्रतीक्षा में सजनि क्षण – क्षण बीतत जाए । पंथ निहारत थके नयन आशा – गागरि रीतत जाए ।। पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी और सुहानी रात ढ़ल चुकी । दिशा बदल चुकी पवन भी काल – गति कितनी बदल चुकी।। आए – गए मौसम यहॉं कई प्रियतम तुम नहीं आए । पंथ निहारत

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शहादत के सूरज

शहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते

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चांद रात

हर तरफ थी रौशनी हर तरफ था उजाला एक  मेरे ही  घर अंधेरा  था चांद रात को गुल खिल गई थी कली मुस्करा रही थी एक मैं ही उदास  बैठा था चांद रात को मैं तुम्हारी जिंदगी की सलामती के लिए बाबर तुम्हारा सदाका  निकाल रहा था चांद रात को तेरे बगैर कैसी होगी इस

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