डॉ. हरिदास बड़ोदे 'हरिप्रेम' मेहरा

डॉ. हरिदास बड़ोदे ‘हरिप्रेम’ मेहरा की मार्मिक कहानी -अजब प्रेम की गजब कहानी

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लेखक की कलम आज केवल अपने वास्तविक जीवन पर ही कुछ लिखने को मजबूर है। अजब प्रेम की गजब कहानी, लेखक की जुबानी और लेखक की कहानी में दिल की गहराई को समझना कोई खेल नहीं है। लेखक के संघर्षमय जीवनकाल के एक संक्षिप्त अंश का वर्णन किया गया है। और यहां एक वास्तविकता के आधार स्तंभ का उल्लेख बड़ी सहजता से किया है। क्योंकि समय का चक्र जब चलता है तो वह राजा को रंक या रंक को राजा भी बना देता है। अटूट प्यार को समझने के लिए इस संघर्षमय जीवन से जो सीखने को मिला है शायद कभी ऐसा नहीं सोचा था कि इस छोटी सी जिन्दगी में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। कौन अपने कौन पराए के बीच का अंतर समझ ही नही आया है। वास्तविक जीवन में रहस्यमयी जीवनगाथा का मैं याने लेखक ही सूत्रधार रहे और किस तरह से अपने जीवन को मोड़ा है। यह जीवन में रहस्यमय तरीके से बीता हुआ वह ऐसा पल जिसे जब भी मैं याद करता हूं तो मुझे पसीना आ जाता है। और मेरे छक्के छूट जाते है, क्योंकि मुझे जो इतना जान से प्यारा था। और मै यह भी जानता हूं कि मैं भी उसको जान से प्यारा था। लेकिन उसने इतना कठोर निर्णय कैसे ले लिया, क्यों लिया, किसलिए लिया यह भी सोचने वाली बात है। सच में कहते है कि समय जब अपना ना हो तो अपने भी साथ छोड़ देते है। और जब अपने और अपना परिवार साथ हो तो एक हिम्मत और ताकत बन जाती है। एक समय ऐसा आया जब मुझे मेरे परिवार की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी। और उस समय मुझे मेरे परिवार ने बहुत संभाला है। और हरपल साथ दिया। मैने भी अपने प्यार और जीवनसाथी को संभालने के लिए जो भी करना चाहा उसमे मेरे पूरे परिवार ने पूरा साथ दिया। कहते है अपना तो अपना ही होता है और उस विषम परिस्थिति में मेरे अपने मेरे हुए। उस समय मेरे परिवार में पिताजी, माताजी, छोटा भाई, बड़ी बहन, छोटी बहन और विशेषकर मेरी प्यारी बेटी मेरी लाडो मेरी सोन परी आदि का महत्वपूर्ण साथ रहा बाकी परिवार, रिश्तेदार का भी समय-समय पर साथ मिलता रहा। अपनी आपबीती को इतनी सरलता और सहजता से जाहिर करना आसान नहीं है। समझ नही पा रहा कि आज मैं यह किस्सा लिखने को तैयार कैसे हो गया मेरे जीवन के कई ऐसे किस्से है जो सोचने को मजबूर कर देंगे यहां पर केवल अपनी जिंदगी में घटित एक संक्षिप्त अंश ही प्रस्तुत कर रहा हूं। लिखना भी जरूरी है कि परिवार की ताकत क्या होती है, कैसे परिवार पर आई अप्रिय घटना हो या विषम परिस्थिति में परिवार को धैर्य बनाना पड़ा और अपने परिवार के सदस्य की मानसिकता को समझते हुए संभालना पड़ा। जब परिवार एक जुट हो जाए तो किसी की आवश्यकता नहीं होती। आज यदि मेरा परिवार मुझे उस वक्त नहीं संभाल पाता तो शायद मैं आज जिंदा ही नहीं होता। क्योंकि उसके प्यार और धोखे के कारण मैं पूर्णतः बिखर गया था। और यदि उस समय पूरी तरह से टूट जाता तो आज सच में बिखर भी जाता।

लेकिन कहते है कि भगवान को शायद यह मंजूर भी नहीं था। और उसने ऐसा होने नहीं दिया क्योंकि भाग्य में शायद कुछ और भी लिखा है। ईश्वर ने जो भाग्य में एक बार लिख दिया वही होगा भले ही थोड़ा कम या ज्यादा हो सकता है। लेकिन होनी तो होकर ही रहती है। एक समय ऐसा था जब मैं सबसे ज्यादा अकेला हो गया था, मेरी धर्मपत्नी जो की उस समय एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी। और अचानक उसने मुझे तलाक का नोटिस भेज दिया। जब मैंने नोटिस पड़ा तो दंग रह गया कि यह क्या हो गया है। जबकि मेरी एक आठ वर्ष की पुत्री भी है। आंखो के सामने एकदम अंधेरा सा छाने लगा। जबकि हम दोनो प्रतिदिन फोन पर बात भी किया करते थे और हर महीने एक दूसरे से मिलने आया जाया भी किया करते थे। मैने जैसे ही नोटिस देखा और उस नोटिस को पड़ा तो मैं पागल सा होने लगा था। क्योंकि मैं और मेरी पत्नी दोनो सुखमय जीवन यापन कर रहे थे कभी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं हुआ। सिर्फ मेरे द्वारा उसे डॉक्टर बनाने का एक लक्ष्य भर था। उसका यह कारण था कि वह पहले से ही पढ़ाई में बहुत होशियार व समझदार थी।
मुझे मेरे परिवार में माता पिता, भाई बहन एवं पुत्री तथा सभी रिश्तेदारों का सहयोग मिला। इसलिए मुझमें ताकत रही और मैने इस मुसीबत का सामना करके मेरी पत्नी को समझने एवं उसे समझाने का पूरा प्रयास किया।
यहां तक कि मेरे द्वारा पूरे परिवार रिश्तेदारो को लेकर मेरे ससुराल में मनाने के लिए भी गया। सभी परिवार और रिश्तेदारों के सदस्यों ने मिलकर मेरी पत्नी और उसके परिवार को समझाने का पूरा प्रयास किया। लेकिन जब समय ही शांत हो तो कोई हमारी बात क्यों सुनते और ऐसा ही हुआ। चर्चा के दौरान ना-ना प्रकार की वार्तालाप में दोनो परिवार के बीच बनी दूरी को पुनः एकत्रित करने का भरसक प्रयास किया। यह भी समझाया गया कि वह हमारे परिवार की बहू नही बल्कि एक बेटी की तरह है। सभी परिवार एवं रिश्तेदारों में उसकी एक अच्छी बहू के रूप में पहचान थी। और यह सही बात है।
मेरे माता-पिता के लिए इतना सब होने के बाद यदि बेटा बहू के बीच तलाक हो जाए तो सोचो उस परिवार के माता-पिता के क्या हाल होंगे। वह देवर जो अपनी बड़ी भाभी के चरण छूता और एक लक्ष्मण भाई की तरह रहता था। मेरी दोनो बहने भी बहुत मान सम्मान से भाभी का ध्यान रखती थी। और वह भी परिवार में लाड़ली बहु के रूप में रहती थी और जब भी ट्रेनिंग से घर आती थी तो सबका बहुत मान सम्मान देखरेख किया करती और सबको बहुत चाहती थी।

यह कि शादी के समय मेरी पत्नी ने केवल बारहवी के पेपर दिए थे। और शादी होने के बाद ससुराल से बीएससी स्नातक, एएनएम नर्सिंग कोर्स बैतूल से करने के बाद एवं उसका फिर नर्सिंग टेस्ट में एमपी की एससी सूची में टॉप कर बीएससी नर्सिंग कोर्स के लिए उज्जैन में प्रवेश कराया और प्रवेश होने के लगभग दो महीने बाद फिर उसे वापस लाकर ब्रेन मास्टर कोचिंग क्लासेस इंदौर में पीएमटी या नीट की तैयारी हेतु इंदौर को भेजा गया। और दो तीन वर्ष तक कोचिंग कराने के बाद मेरी पत्नी को आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज, उज्जैन से प्राइवेट में एमबीबीएस की पढ़ाई कराना मेरे लिए यदि कई जन्म भी लेता तो शायद सोच भी नही सकता था। और ना ही मेरे परिवार में इतनी हिम्मत थी। क्योंकि हम सामान्य परिवार के जीवनयापन करने वाले साधारण व्यक्ति है।
लेकिन ईश्वर की कृपा से मेरे संकल्प और मेरी पत्नी की पढ़ाई में रुचि और उसकी इच्छा शक्ति के कारण आगे की एमबीबीएस डॉक्टर की पढ़ाई कराने के लिए पूरा परिवार का एक मत रहना बहुत बड़ी बात है।
यह भी सच है कि मेरी पत्नी की पढ़ाई लिखाई से लेकर कोचिंग तक मेरे सास-ससुर ने भी हरपल साथ दिया आवश्यकता होने पर कभी पैसे की कमी नहीं आने दी। लेकिन जब मेरी पत्नी ने तलाक देना चाहा तो उसमे भी मेरे सास-ससुर ने मेरी पत्नी को भरपूर साथ दिया और तलाक दिलाने में कसर नही छोड़ी केवल मेरे सास-ससुर ने हरपल उसकी बेटी का ही साथ दिया चाहे वह सही हो या गलत यदि दोनो सास-ससुर थोड़ा समझदार होकर अपनी बेटी को समझने का और उसे समझाने का प्रयास करते तो शायद आज ऐसा नहीं होता। उन्होंने ऐसा भी नही सोचा की इनकी आठ साल की एक छोटी बेटी भी है। आज इस हकीकत से यह कहना जरूर चाहूंगा कि हर माता-पिता को उनके बेटा हो या बेटी पर उनके मोह में इतना भी अंधा नहीं होना चाहिए की उनके बेटा-बेटी भविष्य के लिए क्या निर्णय ले रहे है। जिसे उसे टोके नही, रोके नहीं बस उसकी हां में हां और ना में ना करते जाए। चाहे बेटा-बेटी का घर बर्बाद ही क्यों ना हो जाए। उस समय मेरी पत्नी को कुंडली के अनुसार कालसर्प दोष का योग चरम सीमा पर था। पंडित और कुंडली के अनुसार यह कालसर्प दोष केवल हमारे जीवन में विच्छेद कराने ही आया था। वैसे हम दोनो पति-पत्नी ने कालसर्प का पूजन दो तीन बार अलग-अलग स्थान पर जाकर पूजन भी मोरखा, उज्जैन, इंदौर आदि स्थानों पर कर चुके थे।
यदि कुंडली में कालसर्प दोष होने से दोनो पति-पत्नी के बीच विवाह में विच्छेद का योग था तो इसका कोई तो हल मिलता लेकिन उसके लिए कोशिश करना पड़ता और यहां पर कोशिश केवल मैं ही कर रहा था क्योंकि मेरी पत्नी तो मुझसे नफरत करने लगी थी उसे केवल मैं दुश्मन लगता था बाकी परिवार के सभी लोगो से वह अच्छी बात किया करती थी लेकिन नफरत सिर्फ मुझसे यदि उस वक्त मेरे सास-ससुर मेरी थोड़ी सी बात सुन लेते तो शायद आज ऐसा नहीं हो पाता। मैने स्वयं कुंडली और मेरी सास को लेकर पंडित को कुंडली दिखाने गए थे। पंडित जी ने कहा था कि कुंडली में कालसर्प योग अंतिम चरण पर है इस दोष के कारण यह दोनो पति-पत्नी में तलाक जरूर होगा लेकिन इसकी शांति पूजन विधि विधान से कराया जाए तो शायद कुछ हो सकता है। मैने तो यहां तक मेरी सास को कह दिया की यदि मुझे तलाक के लिए कोर्ट में प्रकरण दे भी दिया है तो कोई बात नही आप मेरी पत्नी के हाथ से आपके ही घर या पंडित के कहे अनुसार कालसर्प दोष के शांति पूजन कराए चाहे उसका खर्चा मैं वहन कर लूंगा। और आपके घर पर उसे रखो मुझसे कुछ समय के लिए मिलने भी मत दो। और कोर्ट के प्रकरण की पेशी को बड़ा दिया करे। जिससे की समय बीतते जाए और कालसर्प दोष का असर धीरे-धीरे कम होता जाए। क्योंकि मुझे मालूम था कि कालसर्प दोष होने के कारण आज वह मुझसे नफरत कर रही है। मेरा चेहरा भी नही देखना चाहती, मुझसे बात भी नही करना चाहती। लेकिन कालसर्प दोष जब कम हो जायेगा या हट जायेगा तो जब मेरी याद आयेगी तब तक सब खत्म हो जाएगा यह अटूट प्यार, अटूट रिश्ता हमारा टूटकर बिखर जायेगा और फिर आपकी लड़की कहेगी की उसे मेरे पास आना है तो आयेगी कैसे…?

इस तरह मेरे परिवार में इतना होने के बाद यदि बेटा बहू, भाई भाभी दोनो के बीच तलाक की बात हो जाए तो क्या परिवार खुश रह सकता है नही कभी नही। एक दिन की बात है जब पूरा परिवार मेरे ससुराल मनाने के लिए गए तो मेरी पत्नी, सास-ससुर आदि कोई भी नही माने क्योंकि उस बीच केवल मैं एक सरकारी स्कूल में अध्यापक था। और मेरे सास-ससुर की बेटी अब एमबीबीएस डॉक्टर बनने वाली थी। यह अहम मेरे ससुराल में हावी था और उस अहम ने हमारे मजबूत रिश्ते को तोड़-मोड़ कर रख दिया। यह ज्ञात होना चाहिए कि घमंड तो राजा रावण का भी नही रहा जिसकी सोने की लंका थी और उसे भी हनुमान जी ने जला दिया था। वही घमंड उस समय मेरे ससुराल में सभी को गया था कि उनकी बेटी तो अब एमबीबीएस डॉक्टर बनने वाली है और मैं केवल एक शिक्षक हूं। दोनो के क्षेत्र अब एक नही है, कहां वो और कहां मैं, बस यही छोटी-छोटी बातों ने आज बसा बसाया घर को बर्बाद करके रख दिया।
अंततः सारे प्रयासो के बावजूद सब प्रयास विफल रहा और हम दोनो के मध्य आपसी सहमति बनी और बैतूल कोर्ट के द्वारा तलाक़ हो ही गया। यह तलाक तो मैंने मजबूर होकर उसकी खुशी और अपने प्यार के लिए उसे दे दिया। लेकिन मेरी प्यारी बेटी को मैने आपसी तलाकनामा में शर्तों से कोर्ट से मांग लिया। मेरे साथ हरपल हर समय मेरा परिवार साथ खड़ा रहा। मैने अपने आप को बेटी के लिए जीना है सोच कर संभाला। इस तरह मेरी बेटी के साथ-साथ पूरा परिवार भी मेरी ताकत बना और पूरे परिवार ने मुझे मिलकर संभाला जिसके लिए मैं अपने अंतर्मन से मेरे माता-पिता, दोनो बहने और छोटा भाई का शुक्रगुजार हूं। मेरे जीवन की बहुत सारी सत्य घटना पर आधारित छोटे छोटे अंश को समय-समय पर लिखने का पूर्ण प्रयास करूंगा।
मेरे जीवन की केवल एक कड़ी को यहां प्रस्तुत कर मेरी वास्तविक आप बीती एवं रहस्यमयी सत्य घटना पर आधारित मैने मेरे अजब प्रेम की गजब कहानी का संक्षिप्त अंश सादर प्रस्तुत किया है।

 

डॉ. हरिदास बड़ोदे ‘हरिप्रेम’ मेहरा
“शिक्षक/कवि/लेखक/साहित्यकार/समाजसेवी”

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