श्री जय प्रकाश वर्मा ऊर्फ कलामजी की कहानी- संगठन का महत्व

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एक आदमी था, जो हमेशा अपने संगठन (समूह) में सक्रिय रहता था। उसे सभी जानते थे और उसका बड़ा मान-सम्मान होता था। लेकिन अचानक किसी कारणवश वह निष्क्रिय रहने लगा, मिलना-जुलना बंद कर दिया और संगठन से दूर हो गया।
कुछ सप्ताह पश्चात, एक बहुत ही ठंडी रात में, उस संगठन के मुखिया ने उससे मिलने का फैसला किया। मुखिया उस आदमी के घर पहुँचा और पाया कि वह घर पर अकेला ही था। वह एक सिगड़ी/बोरसी (अलाव) में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक मुखिया का बड़े ही शांत भाव से स्वागत किया। दोनों चुपचाप बैठे रहे और केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए

देखते रहे। कुछ देर बाद, मुखिया ने बिना कुछ कहे, जलते हुए अंगारों में से एक लकड़ी, जिसमें लौ उठ रही थी, उठाकर किनारे रख दिया और फिर शांत बैठ गया। मेज़बान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण वह मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि आज उसके संगठन के मुखिया उसके साथ हैं।लेकिन उसने देखा कि अलग रखी गई लकड़ी की आग की लौ धीरे-धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग पूरी तरह बुझ गई और उसमें कोई ताप नहीं बचा। वह लकड़ी, जो पहले उज्ज्वल प्रकाश और गर्मी दे रही थी, अब एक काले और बुझ चुके टुकड़े के अलावा कुछ नहीं रह गई थी।
कुछ समय पहले जो लकड़ी आग की चमक और तपन बिखेर रही थी, वह अब मात्र राख के समान निर्जीव हो गई थी। इस बीच, दोनों मित्रों ने एक-दूसरे से बहुत ही संक्षिप्त अभिवादन किया और कम से कम शब्द बोले। जाने से पहले, मुखिया ने उसी बुझ चुकी लकड़ी को उठाया और फिर से जलती हुई आग के बीच में रख दिया। लकड़ी फिर से सुलग उठी और लौ बनकर जलने लगी, जिससे चारों ओर रोशनी और ताप फैलने लगा। जब आदमी मुखिया को छोड़ने के लिए दरवाजे तक पहुँचा, तो उसने कहा, “मेरे घर आकर मुझसे मिलने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज आपने बिना कुछ कहे ही मुझे एक सुंदर पाठ पढ़ाया है कि अकेले व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता। संगठन का साथ मिलने पर ही वह चमकता है और रोशनी बिखेरता है। संगठन से अलग होते ही वह लकड़ी की भाँति बुझ जाता है।” “संगठन या एक-दूसरे का साथ ही हमारी पहचान बनाता है। इसलिए संगठन हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए। हमारी निष्ठा और समर्पण किसी व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि उससे जुड़े विचारों के प्रति होने चाहिए।”
“संगठन किसी भी प्रकार का हो सकता है—पारिवारिक, सामाजिक, व्यापारिक या सेवा संस्थान। संगठन के बिना मानव जीवन अधूरा है। अतः हर क्षेत्र में, जहाँ भी रहें, संगठित रहें! यही संगठन का महत्त्व है।”

पता – धरमपुर, वार्ड नं 02, मकान संख्या -132, पोस्ट+थाना+प्रखंड – गढ़पुरा , जिला -बेगूसराय ( बिहार- 848204 )

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