Deepak jawalkar

अनकहे जज़्बात

शब्द अधूरे लब्ज़ अधूरे, तुम बिन अधूरे है सुर सारे संगीत के मेरे आकर बस जाओ जो तुम इसमें गुनगुनाऊं मै तुमको इसके हर सुर में कुछ शब्दो में तुझे निहारूं कुछ में तेरा मासूम सा चेहरा कुछ सुरों में ढूंढू हंसी तेरी कुछ सुरों में वजह तेरी खामोशी की शब्द अधूरे लब्ज़ अधूरे तुम […]

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मै हु अन्न का दाता

मै हु अन्न का दाता पल पल पर मै आजमाया हु जाता सदी,गर्मी,बारिश में भी अडिग हो अपना कर्तव्य हु निभाता भीष्ण हो गर्मी , या हो ठिठुरती ठंडी सब जाते है हार जब जब मै अविरल सा कर्तव्य पथ पर हु चलता पसीने से मैं फसलों को सींचता कर परिश्रम अन्न उगाता दिन रात

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ये कैसी नमी !

उद्धस सी जमीं सूखी-बेजान सी धरा को, अचानक हुआ कुछ तरावट का एहसास धरा का मन प्रफुल्लित हर्ष से आनंदित हलाहल कर उठेगीं, फसल, हजार परन्तु शीघ्र ही खुशी सारी मायूसी में बदल गई धरा का कलेजा छलनी हो गया वह नमी तो थी एक कृषक की ,अश्रुधार।।

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मै नन्ही सी हु एक गुड़िया कांच सी बिखरी हुई एक गुड़िया

मैं नन्ही सी हु एक गुड़िया नाम दे दो मुझको तुम चाहे रानी, बानी चाहे तो मुनिया नासमझ सी नन्ही सी गुड़िया दुनियादारी से दूर ये गुड़िया मीठी सी चाशनी में घोल कर पिलाई थी जिसे जहर की पुड़िया कहानी हुई शुरु वहां से जहां होती है विश्वाश की डोरी तनिक भी आभास नहीं था

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सोचा ना था

सोचा ना था सोचा ना था कि तुम ऐसे बदल जाओगे फोन करने पर आप कौन? कहकर आसानी से भूल जाओगे संभाले रखा हूॅ, मैं आज भी तुम्हारे साथ जुड़े हर यादों को बिते हर लम्हा और वादों को बिल्कुल धरोहर की तरह अब भी सब, वैसा का वैसा ही पर सोचा ना था कि

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पापा की शेरनी

पापा की शेरनी खुशनसीबी है तरु की जब तक रही पापा आपके साये तले पापा की परी नहीं शेरनी बनकर रही है, आपकी उंगली को पकड़कर कदम दर कदम बिना रुके चली है देखा पापा आपको खुशियों की खातिर अपनी खुशियों की आहूति पल पल आपको देते, ऐसे ही नहीं आदर्श अपना मानकर आपसे प्रेरित

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रोटी की परिभाषा

१- पिता को समर्पित हे पिता ! तुमको नमन, तुमको नमन, तुमको नमन हे पिता ! तुमको नमन, तुमको नमन, तुमको नमन   तुमसे है यह धरती गगन तुमसे है यह हंसता चमन तुमसे है यह मां की हंसी तुमसे है यह मेरा जन्म तुम सत्व में अस्तित्व में, निरपेक्ष में सापेक्ष में, तुम पुत्र

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बेज़ुबानों की आह

“बेज़ुबानों की आह” ~~~~~~~~~~ बिना सोचे समझे बेवजह ही जंगलों में आग लगा कर क्या साबित करना चाहता है इंसान क्या वो इस बात से अंजान है या फिर जानबूझ कर ऐसा कर रहा है। शायद उसे इस बात का रत्ती भर भी एहसास नहीं है कि कितने बेज़ुबान जीव उस आग की चपेट में

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जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई।।

” सम्राट अशोक जन्मोत्सव पर विशेष” नमो बुद्धाय साथियों , इतिहास की विभिन्न धाराओं को समेटे हर एक पंक्ति आपसे बहुत कुछ कहना चाहती है । अतीत की झलक प्रस्तुत करती ये मेरी कविता अग्रिम आभार सहित आप सब के बीच प्रस्तुत है “जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई ” जो बीत गई वो

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जग में मिली है सफलता तुझे

जग में मिली सफलता तुझे , कुछ अच्छा कर दिखाने में , इस संसार में आये हो तू तो , कुछ अच्छा करो शीघ्र करो , जग में मिली है सफलता तुझे । आये हो इस जग में जब तू , जन्म हुआ इस दुनिया में , श्रम करो परिश्रम करो तू , जग में

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