डॉ. नीरज पखरोलवी की कहानी -अपनों की बेरुखी

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अमोल लुधियाना की एक साइकिल कंपनी में काम करता था और हाल ही में छुट्टी लेकर गाँव आया था । इन दिनों गाँव में भागवत कथा का आयोजन चल रहा था । एक रात, आरती में शामिल होने के लिए जब वह घर से निकला, तो रास्ते में अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई । लड़खड़ाते हुए उसने एक दीवार का सहारा लिया । संयोगवश, उसी समय आरती के लिए जा रही गाँव की कुछ महिलाओं ने उसे देखा और घर तक पहुँचाया । अमोल की बीमारी की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई । पंकज ने तुरंत अपनी गाड़ी निकाली और उसे अस्पताल पहुँचाया । डॉक्टरों ने स्थिति नाज़ुक बताई और बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर दिया, लेकिन सुबह लगभग पाँच बजे अमोल इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गया । अमोल की पत्नी ऊषा पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा । उसे दो छोटे-छोटे बच्चों और बीमार, वृद्ध सास की चिंता कचोटने लगी । बच्चों की पढ़ाई, सास की दवा और रोज़मर्रा के खर्चों के लिए पैसे कहाँ से आएंगे ? मृत्यु के बाद होने वाली लंबी व खर्चीली क्रियाएँ बिना पैसों के कैसे पूरी होंगी ? इन्हीं विचारों में उलझी ऊषा को शंखध्वनि ने झकझोर दिया । वह लड़खड़ाते कदमों से उठी, कफन में लिपटे पति के पार्थिव शरीर की परिक्रमा की और फिर बेसुध होकर गिर पड़ी । गाँववाले परिवार की आर्थिक स्थिति से परिचित थे । अमोल की मृत्यु के बाद ऊषा के सामने खड़ी अनगिनत चुनौतियों को वे भली-भांति समझ रहे थे । इसलिए उन्होंने आपस में धन एकत्र किया, ताकि अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार जाने और मृत्यु के बाद की अन्य आवश्यक क्रियाएँ संपन्न करने में कोई बाधा न आए । उन्होंने यह राशि ऊषा को सौंपी और कुछ धनराशि उसके नाम से बैंक में भी जमा करवा दी, ताकि आने वाले कठिन दिनों में उसे सहारा मिल सके । लेकिन अमोल के चाचा और उनके परिवार को यह सब नागवार गुजर रहा था । गाँववालों का ऊषा की सहायता करना उन्हें खटक रहा था । उनके भीतर ईर्ष्या और कटुता भर गई थी । उन्होंने ऊषा से बोलचाल तक बंद कर दी और उसे देखकर ताने कसने लगे—”सब तेरे कर्मों का फल है । तेरी ही वजह से यह हुआ है । पिछले जन्म में तूने अवश्य कोई बुरा कर्म किया होगा, तभी इस जन्म में उसका दंड मिल रहा है । तेरे पापों की सजा में ही हमारा अमोल हमसे छिन गया ।”
ऊषा यह सब चुपचाप सुनती और अपनी पीड़ा को शब्दों में व्यक्त करने के बजाय भीतर ही भीतर सिसकती रहती ।मदन दादा, जो गाँव के हर सुख-दुःख के साक्षी रहते हैं, एक दिन पंकज से बोले, “मैंने मुख्यमंत्री के नाम एक एप्लीकेशन लिखी है । इसे टाइप करके दो-चार दिन में मुझे दे देना । यह एप्लीकेशन मैं उर्मिला को दूँगा, जो मुख्यमंत्री की करीबी है । हो सकता है, सरकार से ऊषा को कुछ वित्तीय सहायता या कोई छोटी-मोटी सरकारी नौकरी मिल जाए, जिससे उसके घर का खर्च चल सके ।”
पंकज ने एप्लीकेशन टाइप कर अपनी माताजी को सौंपते हुए कहा, “जब भी मदन दादाजी इसे मांगें, तो उन्हें दे देना ।”
माताजी ने जवाब दिया, “वे आए थे और कहकर गए हैं कि यह एप्लीकेशन उर्मिला को दे देना । लेकिन जब उर्मिला से बात की, तो उसने इसे लेने से इनकार कर दिया ।”
पंकज ने सुझाव दिया, “तो फिर अमोल के चाचा की बेटी चित्रा से बात करनी थी । वह भी मुख्यमंत्री महोदय की काफी करीबी है ।”
माताजी ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “चित्रा से भी बात की थी, पर उसने साफ मना कर दिया । कहने लगी कि ऊषा के मामले से उसे दूर ही रखना । अब मैंने फैसला किया है कि मैं खुद ही मुख्यमंत्री महोदय को यह एप्लीकेशन दूँगी ।”
कुछ दिनों बाद जब मुख्यमंत्री महोदय से मिलने की तैयारी हुई, तो माताजी के साथ चित्रा और उर्मिला भी जाने के लिए तैयार हो गईं । गाँव सेरा के रेस्ट हाउस, जहाँ मुख्यमंत्री महोदय ठहरे हुए थे, पहुँचने पर चित्रा ने पूछा, “एप्लीकेशन में क्या लिखा है ?”
माताजी ने एप्लीकेशन उसकी ओर बढ़ा दी । एप्लीकेशन देखते ही चित्रा हँसते हुए बोली, “किस बेवकूफ ने लिखी है यह एप्लीकेशन ? एप्लीकेशन कोई अंग्रेज़ी में होती है !”
माताजी ने हल्की मुस्कान के साथ तंज कसते हुए कहा, “तो तूने लिख लेनी थी ! ऊषा तेरे घर की है, तेरी भाभी है । और तू मुख्यमंत्री की करीबी है, पाँच महीने तक क्या करती रही ?”
चित्रा झेंप गई, फिर धीमे स्वर में बोली, “लेकिन प्लीज, मुख्यमंत्री जी को मत बताना कि ऊषा मेरी भाभी है । हमारी तो बेइज़्ज़ती हो जाएगी !”
पास ही खड़ी उर्मिला ने कहा, “जिसे एप्लीकेशन देनी है, वही खुद लिखे । दूसरों से क्यों लिखवाई ?”
माताजी ने चित्रा और उर्मिला की ओर देखा और स्थिति को भांपते हुए चुप रहकर मुख्यमंत्री महोदय से मुलाकात का इंतज़ार करना ही उचित समझा। घर लौटते समय माताजी ने चित्रा से कहा, “हमें हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे आना चाहिए, न कि टीका-टिप्पणी और मीन-मेख निकालने में समय गंवाना चाहिए।” उन्होंने आगे समझाया, “मुद्दा यह नहीं है कि एप्लीकेशन अंग्रेजी में हो या हिंदी में, बल्कि यह है कि आपकी बात कितनी ईमानदारी और प्रभावी ढंग से रखी गई है । भाषा से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि किसी जरूरतमंद को समय पर सहायता मिले । विरोध सिर्फ विरोध के लिए नहीं होना चाहिए ।”
माताजी ने फिर गंभीर स्वर में कहा, “देख उर्मिला, मुख्यमंत्री महोदय के आशीर्वाद से तेरे बेटे को नौकरी मिल गई और चित्रा को भी रोजगार मिल गया। लेकिन ऊषा के जीवन में उजाला न हो, उसका भला न हो—यह मानसिकता बहुत खतरनाक है। सिर्फ अपने भले की सोचना और दूसरों की परवाह न करना—यह सोच समाज को विकृत कर देगी। तुम दोनों मुख्यमंत्री की करीबी हो, तुम्हें तो अपने आप ही गाँव के हर जरूरतमंद की मदद के लिए आगे आना चाहिए।”
चित्रा ने उर्मिला का हाथ पकड़ा और तुनककर बोली, “हम नहीं पड़ते इन झंझटों में ! हमें क्या लेना-देना दूसरों से ? भाड़ में जाएँ सभी !” इतना कहकर दोनों आगे बढ़ गईं। कुछ दिनों बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से ऊषा को फोन आया, “आपकी एप्लीकेशन हमें प्राप्त हुई है। सरकार आपकी स्थिति से अवगत है और आपकी सहायता के लिए हर संभव प्रयास करेगी । ” यह सुनते ही ऊषा की आँखें भर आईं । गले में अटके शब्दों को सँभालते हुए, उसने धीमे, काँपते स्वर में कहा, “धन्यवाद… अगर सचमुच मदद मिल जाए, तो मेरे बच्चों का भविष्य सँवर सकता है ।”
अगले दिन माताजी ने उत्साहित होकर चित्रा को बताया, “मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन आया था । अंग्रेज़ी में लिखी एप्लीकेशन का असर हो रहा है। लगता है, ऊषा के लिए कुछ भला होने वाला है ।”
चित्रा ने चटखारे लेते हुए कहा, “देख लेना, होगा कुछ नहीं । इस गाँव में कोई भी काम करने से पहले हमसे ही पूछा जाता है, क्योंकि मेरे पापा बूथ प्रभारी हैं । और फिर, ऐसे-ऐसे ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे न जाने कितने लोग मुख्यमंत्री महोदय के पास रोज़ आते हैं । अगर सबके काम यूँही होने लगें, तो सरकार चलाना ही मुश्किल हो जाएगा !”
“सरकार इतनी असंवेदनशील नहीं हो सकती । मुझे यकीन है कि ऊषा के लिए कुछ अच्छा ज़रूर करेगी ।” इतना कहकर माताजी चुप हो गईं, लेकिन उनके मन में कहीं एक फिल्मी गीत की पंक्तियाँ “अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ” गूंजती रहीं, जैसे यह एहसास दिला रही हों कि अपनों की बेरुखी ही सबसे गहरी चोट देती है ।
पता – गाँव पखरोल, डाकघर- सेरा, तहसील- नादौन,
जिला- हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश-177038

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