निर्मेष

दायित्व

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मैंने अपना बैग रखने के पहले ही टीवी ऑन कर दिया था। पहलगाम हमले के बाद से लगभग रोज का यही हाल था। तभी सात वर्षीया गुनगुन ने आकर मेरा बैग खोला कि शायद उसके लिए नित्य की भांति कुछ खाने-पीने का सामान उसके लिए उसमे होगा मगर कुछ न पाकर थोड़ी नाराज होते हुए बोली –
” क्या दादू आप भी आकर टीवी से एकदम चिपक जाते है, हम लोग टीवी एकदम नहीं देख पाते ।”
” अरे भाई देख रही हो देश पर संकट आया है, कितने निहत्थे यात्रिओं को पहलगाम में आतंकवादियों ने मार दिया , तुम लोगो को कुछ खबर है की देश में कितना बड़ा संकट आया है ? ”
” मगर क्यों दादू , ऐसा उन्होंने क्यों किया और ये आतंकवादी लोग कौन है ? ” गुनगुन को लगा की कोई विशेष बात हो गयी जिससे मै बहुत दुखी हूँ और वह थोड़ी नम्र और दुखी हो गयी।
” बिटिया ये राक्षस की तरह के लोग होते है , जो बिना कारण किसी को भी मार देते है।”
” अच्छा रामायण के रावण कुम्भकरण की तरह। ”
” नहीं बेटा ये उनसे भी क्रूर होते है , उनके तो फिर भी कुछ सिद्धांत होते थे मगर ये अकारण ही किसी के हत्या बुरी तरह करते रहते है। ”
” ऐसा करने से उन्हें क्या मिलता है?, और फिर हमारी सरकार क्या कर रही है, हमारे सोशल साइंसेज की किताब में बताया गया है की जनता की रक्षा करना सरकार का दायित्व है , तो फिर सरकार अपने दायित्व को क्यों नहीं पूरा करती है ?
” बिलकुल सही कहा बेटा , लेकिन सरकार में भी तो हमी जैसे लोग होते है। कभी – कभी उनसे भी चूक हो जाती है। ”
” तब अब क्या होगा ? ” अब गुनगुन कुछ सीरियस हो गयी थी , खाने- पीने की बात वह लगभग भूल ही चुकी थी।
” वही सब देखने के लिए की सरकार आगे क्या करने वाली है , ऐसे राक्षस आतंकवादियों से आगे देश के लोगो को कैसे बचाएगी , मै टीवी देखता हूँ आजकल ”
” हूँ , तब तो देश में भयंकर संकट है दादू , सरकार के पास सेना होती है , उन्हें क्यों नहीं लगा देती इन्हे मारने के लिए ?”
मैंने यह सोचते हुए की इस अबोध बालिका को अभी इन सब बातों से दूर ही रक्खा जाय । कोमल मन है कहीं कुंठित न हो जाय , बात को मोड़ते हुए उसे दस का नोट दिया और कहा कि-” जाओ नीचे राजू कि दुकान से चिप्स ले आओ और मम्मी से चाय के लिए बोल दो। हम दोनों चिप्स के साथ चाय पियेंगे अब ”
गुनगुन ने दस का नोट तो पकड़ा पर वही खड़ी रही और मेरे साथ सीरियस होकर टीवी देखने लगी।
” लेकिन दादू ये लोग हमारे सैनिको को भी मार सकते है , तो हमारे सैनिकों के बच्चे – बीबी अनाथ नहीं हो जायेगे। ”
” नहीं बेटा हमारे सैनिक बहादुर है, वे उन राक्षसों को मार डालेंगे। ” गुनगुन को थोड़ी गर्व की अनुभूति हुई यह सुनकर।
” दादू उन राक्षसों के भी बीबी बच्चे तो होंगे न ” पुनः भावुक होकर वह बोली।
” नहीं बेटा उनके बीवी बच्चे नहीं होते ” मुझे लगा की अब ये भावुक हो रही तो मैंने उसे और समझाते हुए कहा की इनसे शादी कौन करेगा और जब शादी नहीं होगी तो बीबी -बच्चे का प्रश्न ही नहीं उठता।
” हूँ,,,,, मगर दादू अगर उन्होंने हमारे सैनिको को मार दिया तो, उनके बीबी -बच्चों का क्या होगा और फिर और सैनिक कहाँ से आएंगे ?” उसके बातों कि गंभीरता बढ़ती जा रही थी। मैंने थोड़ा मनोविनोद कि दृष्टि से बोला –
” अव्वल तो वे हमारे वीर सैनिकों को मार नहीं पायेगे। फिर भी अगर ऐसी स्थिति आयी तो हमारा दायित्व है की उनके बीबी -बच्चो और उनके सभी परिवार की देख -रेख हम सब करेंगे। तब मै भी सरकार से कहूंगा की मुझे भी सैनिक कि जगह रख लो , देश के लिए लडूंगा , अपने देश के लड़ना बहुत गर्व की बात है। हम सभी को इसके लिए हरदम तैयार रहन चाहिए। ”
“पर दादू आपको बन्दूक चलाना आता है क्या ? ”
” सीख लूँगा। ”
” जब तक सीखेंगे तब तक तो वे आपको भी मार देंगे ” कहते -कहते वह लगभग सुबुकने लगी थी। नहीं -नहीं दादू मै आपको सीमा पर नहीं जाने दूँगी , मै सरकार से कहूँगी की मेरे दादू को सीमा पर न भेजे । कही आप को वे मार देंगे तो मै क्या करूंगी ? नहीं -नहीं आपको कही नहीं जाना है। आप मुझे सेना के लिए तैयार कर दीजियेगा, मै सेना में जाकर पूरी तैयारी से लडूगीं और उन राक्षसों को मार कर आउंगी ”
” नहीं बेटा वो तो बाद की बात है , तुम इतनी चिंता मत करो। हमारे सैनिक बहुत बहादुर है। वे ऐसी स्थिति नहीं आने देंगे , ये हमसब जानते है। अभी ऐसी कोई जरूरत नहीं है। हाँ अगर कभी जरूरत पड़ी तो अवश्य हम और तुम दोनों लोग उनकी सहायता के लिए जायेगे। आओ इस वादे के साथ हम अपनी बहस समाप्त करते है और चाय पीते है। गुनगुन तब तक गंभीर ही बनी रही। मैंने टीवी बंद किया उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर बाजार की ओर चल दिया।

निर्मेष

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