मैं नन्ही सी हु एक गुड़िया
नाम दे दो मुझको तुम चाहे
रानी, बानी चाहे तो मुनिया
नासमझ सी नन्ही सी गुड़िया
दुनियादारी से दूर ये गुड़िया
मीठी सी चाशनी में घोल कर
पिलाई थी जिसे जहर की पुड़िया
कहानी हुई शुरु वहां से
जहां होती है विश्वाश की डोरी
तनिक भी आभास नहीं था
यहां पर होगा आत्मघात विश्वाश का
उजाला दिन का अंधकार बना था
जंगल घना हृदय की पीर बना था
कुछ दोहरे शक्लों में
गिद्ध का स्वरूप दिखा था
नन्हे से कोमल तन को गिद्ध कोई नोच रहा था
उसकी चीखों सारा जंगल भी चीख रहा था
पंछी भी सारे देख कोलाहल करते रहे निरन्तर
मदद करो कोई नन्ही मुनिया की
शायद ऐसा वो कह रहे थे
मै नन्ही सी एक हु गुड़िया
टूट कर बिखरे कांच सी गुड़िया
ये तो थी शुरुआत टूटने की
अभी तो बाकी थी कहानी बिखरने की
नासमझ सी मैं हु गुड़िया
कठपुतली सी जिसको समझा मै हु वो गुड़िया
ना जाने कब तक नोची गई मैं
मौत से बत्तर जीवन जीती रही मै
कभी चार दिवारी में
कभी सुनी राहों में
कभी भीड़ में भी खुद को खोती रही मै
मै नन्ही सी हु एक गुड़िया
टूट कर बिखरे कांच सी गुड़िया
दीवारें भी रोई मुझ संग
तन्हा राहें भी बिलखी है मुझ संग
नासमझी के सफर से शुरू हो
समझदारी के सफर तक हर पल टूटी ये गुड़िया
मै नन्ही सी हु एक गुड़िया
टूट कर बिखरे कांच सी गुड़िया
हर आहट पर सहमी रूह भी
हर पल डर में जीती एक गुड़िया
काल कोठारी सी लगती थी जिसको
ये सारी की सारी दुनिया
मै नन्ही सी हु एक गुड़िया
टूट कर बिखरे कांच सी गुड़िया
मै नन्ही सी गुड़िया
तोफे चॉकलेट से जाती हु भरमाई
फिर वासना से लिप्त हाथों से जाती हु कुचली
किस्मत देखो मै कठपुतली सी बेजान सी हु जाती
जब अपनो की ही बेरुखी से मै हु जाती निरन्तर सताई
सब जानकर है अनजान बन जाते
ना जाने कैसे है वो अपने
नन्ही सी इस गुडिया की जिसको मायूसी ना दिखती
आज ये नन्ही सी गुड़िया
दुनिया से जवाब हैं चाहती ..
कब तक डरोगे तुम सच से
कब तक पीड़ा मेरी अनदेखी होगी
दुनिया ना उठा दे उंगली मुझ पर
इसलिए ना जाने कितनी ही मुनिया
अब भी गुमसुम इस पीड़ा को सह रही होगी
उस खामोशी के अंधकार रूपी कोठारी में
हर पल तड़प रही होगी
कुछ मुनिया है आती हौसला भर कर
सच ले दुनिया के सामने
कितनी मुनिया आज भी होती अनदेखी
परिवार की खामोशी के कारण
किस बात का डर है तुमको
मुझ पर कोई उंगली उठायेगा क्यू
जो गलत कर शान से घूमता
उसका सर झुकावों तुम
मै नन्ही सी नासमझ सी मुनिया
विनती सबसे आज करु
मुझको बचा लो अंधकार के कुएं से
जीवन भर इस में ना मै डूबी रह जाऊ
इस तड़प के अंधेरे कुएं में जीना मुश्किल है
पल पल तड़पने से अच्छा
अब तो लगता मुझको मरना है
हिम्मत मेरी ना टूटे
साथ मेरे तुम चलो
मै हु एक नन्ही सी कोमल सी गुड़िया
मुझको बिखरने से तुम बचाओ
मैं नन्हीं सी हु एक गुड़िया
नाम दे दो मुझको तुम
चाहे तो रानी बानी और चाहे तो मुनिया
पर मै हु कोमल सी गुड़िया
कभी गांव,कभी शहर,हर जगह है मेरे लिए
अब अंधा कुआं
डर डर पग रखूं अब पथ पर
किस मोड पर है शिकारी बैठा
किस गली से गुजरु बाबा
अब तो चार दिवारी में भी है एकं डरावना साया
निरंजन डांगे
बैतूल मध्यप्रदेश