यथार्थ की झलक

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आप सभी मित्रों को मेरा नमस्कार 🙏🙏

आज की मेरी कहानी है” एक बुजुर्ग के मन के भावो” को और कुछ यथार्थ स्वरूप को उजागर करती हुई जो मैने दिनांक 14 नवम्बर 2024 को लिखी थी जब मैने लिखने की शुरुआत ही की थी तो कुछ त्रुटियां ही सकती है

नीलू एक नर्सिंग ऑफिसर है और अस्पताल में कार्यरत है
हर दिन कई लोगों से मिलती है और उनको समझने की कोशिश करती है हर दिन की तरह नीलू आज भी अपने कार्य में व्यस्त थी कि तभी वहां एक बुजुर्ग आए उनकी उम्र कोई 70 साल के आस पास थी नाम था श्यामलाल शरीर कमजोर था हाथ कांप रहे थे और हाथ में लाठी लिये हुए अस्पताल में दाखिल हुए और नीलू की कुर्सी के पास आकर खड़े हुए :_श्यामला और नीलू की वार्तालाप

श्यामलाल:_ बेटा डॉक्टर साहब कहा बैठते है ?

नीलू :_जी बाबा कहिए क्या परेशानी है कहते हुए रक्तचाप जांच हेतु कुर्सी पर बैठने को कहा और जांच करते हुए पूछा बाबा अकेले आएं हो साथ कोई नहीं आया क्या ?

(ये सवाल जैसे उस बुजुर्ग के अंतरमन तक गूंज गया और अनायास ही खामोश होकर कुछ सोचते हुए)

श्यामलाल:_नहीं बेटा कोई नहीं आया

नीलू :_अच्छा तो आपके परिवार में कोन कोन है आप अकेले क्यू आए किसी को साथ ले आते

श्यामलाल:_3बेटे है 2 बहुएं और नाती पोती है पर सब अपने कार्य में व्यस्त है किसी के पास समय नहीं है (कहते हुए उदास हो गए)

नीलू :_चलो कोई बात नहीं बाबा डॉक्टर को दिखा दो कहते हुए डॉक्टर के कमरे की तरफ इशारा किया

(इसी बीच बात करते हुए नीलू ने उनकी जांच करते हुए देख लिया था कि उनको तेज बुखार है वो बुजुर्ग डॉक्टर को दिखाने गए हुए थे लेकिन उनकी खामोशी और उदास आंखे जैसे नीलू से बहुत कुछ कह गई थी उनकी आंखों में वो उदासी और अकेलापन साफ महसूस होता था बस यही सोचते हुए कि आखिर एक बुजुर्ग बाप से बढ़कर और कोनसा कार्य हो सकता है सोचते हुए नीलू अपना कार्य करने लगी तभी डॉक्टर की आवाज आई)

डॉक्टर:_सिस्टरजी इनको इंजेक्शन और ड्रिप लगा दीजिए

नीलू ने जी सर कहते हुए उस बुजुर्ग को पलंग पर लेटने को कहा और इंजेक्शन लगाया और आराम करने का कह कर वापस आगई और बीच बीच में उनको देखने जाती रही तभी लंच का समय हुआ पर नीलू के मन में उस बुजुर्ग की ही मायुस शक्ल घूम रही थी तो वो खाना खा कर उनके पास पहुंची )

नीलू:_अब आपको कैसा लग रहा है बाबा ठीक लग रहा है

श्यामलाल:_हा बेटा अब ठीक हु

नीलू:_बाबा अब आप बताइए आप अकेले ही क्यू आए जब इतना बड़ा परिवार है तो

(ये सवाल जैसे उनको आहत कर गए और थोड़े उदास और मायूसी होते हुए उन्होंने कहा )

श्यामलाल:_बेटा भरा पूरा परिवार है पर फिर भी मै अकेला हु सब व्यस्त है अपने अपने काम में कोई पढ़ाई में कोई खेती में कोई नौकरी में मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं है मुझे तो लगता है जैसे मै सब पर बोझ बन गया हु ये ईश्वर मुझे शीघ्र अपने पास बुला ले

(ऐसा कहते हुए उनके आंखों से आंसु छलक गए जो नीलू के मन को विचलित कर गए फिर उसने बुजुर्ग को सांत्वना दी और फिर वहां से चली आई क्यूंकि वो सिर्फ सांत्वना दे सकती थी क्यूंकि जो प्यार और साथ की वो आशा रखते थे वो तो सिर्फ परिवार हीं दे सकता था शाम तक वो बुजुर्ग ठीक होकर घर चले गए और छोड़ गए सवालों की एक गठरी
ऐसे हीं समय बीतता गया कभी कभी वो बुजुर्ग अस्पताल आते थे इलाज कराने कभी कभी कोई साथ होता था पर ज्यादातर अकेले ही होते थे
बहुत समय तक वो बुजुर्ग अस्पताल नहीं आएं फिर एक दिन अचानक गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल लाया गया और अचरज की बात ये थी कि आज उनका पूरा परिवार साथ था जो इससे पहले कभी नहीं आया था उनके साथ
बहुत देर उन बुजुर्ग बाबा का इलाज चलता रहा और फिर
उनका देहांत हो गया और जब वो उस हस्पताल के पलंग पर निर्जीव अवस्था में थे तब उनका चेहरा बिल्कुल शांत था और ऐसा लग रहा था मानो कह रहा हो
बेटा अब मै जा रहा हु इस मतलबी दुनिया से जिसके लिए मैने अपना सर्वश्व न्यौछावर कर दिया और जब मुझे बुढ़ापे में उनकी जरूरत पड़ी तो सबने मुझे अकेला छोड़ दिया
उनका ये निर्जीव मुख कितना कुछ कह गया था कितना व्यथित था उनका अंतरमन जो आज मृत्यु की गोद में जाकर सुकून का अनुभव कर रहा था

बस इसी कहानी पर कुछ पंक्तियां जो मुझे उस समय लगा वो मैने लिखी थी :_

जीते जी तो साथ नहीं थे
मरने पर क्यू साथ खड़े है
जो ना समझ सके दर्द बूढ़े शरीर का
का आज वो रोए क्यू

बीमारी ने तो बाद में तोड़ा मुझको
अपनो के व्यवहार ने तोड़ा पहले
भीड़ भरे इस संसार में भी
तन्हा सा किया मुझको

दो कदम साथ ना चल सके
अब चार कंधों पर मुझ को ले जाओगे
दो रोटी वक्त पर दी नहीं मुझको
अब मृत्यभोज देकर मेरी आत्मा की शांति कैसे पाओगे

……

✍️ मैं लेखनी मेरे सपनो की
निरंजना डांगे
बैतूल मध्यप्रदेश
स्वरचित मौलिक

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