(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें )
कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ,
इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें नाथ।
राहों में थक कर बैठे हैं, अब नयन तुम्हें ही तकते हैं,
मन की माटी भी भीग रही, तेरी हर सूरत ही गढ़ते हैं।
तेरी आस की बाती बना, मन द्वार के दीपक जलते हैं,
जग की बाँहें सब छूट गईं, हम तेरी धार में बहते हैं।
अब तो तेरे सहारे रहेंगे नाथ, अब तो शरण गहेंगे नाथ।
पलकों पे तेरी रेखाएं हैं, अब सांसें भी अरजाएं हैं,
तू ही संबल, तू ही साक्षी, ये बंधी–बांधी आशाएं हैं।
मन मंदिर में थाली सजी, आरती में तुझको गाएं हैं,
धड़कन–धड़कन जप बन जाए, बस नाम तेरे ही लाएं हैं।
अब तो पलकों पे रहेंगे नाथ, अब तो ह्रदय रचेंगे नाथ !
चुप्पी में तेरी वाणी है, हर मौन में तेरी कहानी है,
जो राह न दिखती जग में, वो तेरी किरनों से जानी है।
हर पीड़ा में परछाईं तू, हर श्वास में तेरी रवानी है,
हम द्वार तेरे है पथिक बने, पथ तुझसे ही पहचानी है।
अब तो कण–कण में बसेंगे नाथ, अब तो तेरे नाम जपेंगे नाथ।
तन छोड़ दिया, मन त्याग दिया, अब भाव सभी हैं तुझको अर्पित,
जो भ्रम था अपना–पराया सा, वो भाव सभी हैं तुझमें विलीनित।
न मैं ही रहा, न माया रही, बस तू ही शेष, तू ही जीवन निमित्त,
अब शब्द नहीं, अब मौन हुआ — बस प्रेम तुम्हारा अन्तर्निहित।
अब तो प्रतीक्षा ख़त्म करेंगे नाथ — अब तो आत्म–परमात्म मिलेंगे नाथ।
हरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
हमदम दिलदारनगरी )
मौलिक व स्वरचित
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