ज़िन्दगी
वो जो आज किस्से कहानियों में है कभी ज़िंदगी का हिस्सा हुआ करता था।। ~रसाल सिंह ‘राही’
दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है
तू मुझे चाँद सा लगता है या यूँ कहूँ पूरा आसमान सा लगता है तेरा मुझको नहीं पता मगर… मुझको तू मेरे ईमान सा लगता है तुझे मान चुका हु मैं आपनी दुनिया तु मुझे दुनिया जहांन सा लगता है तुझसे ही जुदी है मेरी सारी खुशिया तु मुझे मेरी खुशियो का सामान सा
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कविता(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें ) कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ, इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें
भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ Read More »
कवितासारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के
सारे जग के सच्चे बच्चे Read More »
कवितापुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर
कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं
चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो
प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में Read More »
कविताकवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले
आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में
आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम Read More »
कविताशहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते
मन की भूमि पर अंकुरित हुआ एक नन्हा पौधा कितना कोमल,कितना प्यार,कितना सुंदर है ये पौधा जड़े गहरी, तना मजबूत, टहनियां झूल रही है मदमस्त सी परिश्रम की बूंदों से हर क्षण बढ़ रहा है ये पौधा एक दूजे को साथ लेकर बढ़ रही है टहनियां पाकर प्रीत हवा का झोंका झूम रही है टहनियां
कस्बे के कोलाहल से दूर सिवान था सुदूर काम से लौटते मजदूर पर तुमसे मिलने का सुरूर I सुहानी सुरमयी शाम आज भी है याद तेजी से ढलती शाम चाँदनी आने को करती फ़रियाद I हमारे मिलन ने उसे रोक रखा था उसने तारों का वास्ता दिया उदास मैंने तुमको विदा किया। समय पंख लगा
लिखना चाहता अगर समाज को, मैं तो, लिख देता सारे अच्छाइयों को कुछ चंद आधे पन्ने पर तनिक सा स्याही समाप्त होता बस, क्योंकि, बहुत कम है अच्छाई इस समाज में… लिखा इसलिए नहीं, क्योंकि पल भर में ही समाप्त हो जाते पन्ने और स्याही मेरे अगर करता मैं वर्णन बुराईयों का, शायद बहुत बुराइयां
मैंने लिखा इसलिए नहीं…. Read More »
कवितावो ही तो हूँ मैं गुजार दिए होंगे दिवस, मास, वर्ष जो एक रात ना कट सके, वो पल ही तो हूँ मैं जाने कितने ही लोगों से कितनी ही दफां की होगी बातें हृदय की सुन सकूॅं, वो शख्स ही तो हूँ मैं जीवन में बिताए है हसीन पल सबके साथ जो कभी
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कविताबचपन की मीठी यादों को हम दिल में लिये चलते हैं | जिस घर में रहा करते थे उस घर को याद किया करते हैं || माँ के हाथो से पिटाई पापा के हाथों से मिठाई | बहिन भाई से लड़ाई उन सभी बातो को याद किया करते हैं || बचपन भी क्या था, न
जब तुम इस धरा पर आई थी घर में मातम छाया था तुम्हारी दीदी के बाद एक और लड़की घर में आई थी मम्मी के चेहरे पर दबी हुई खुशी थी एक गुड़िया के रूप में उनकी छवि फिर से आई थी पापा के लिए एक नन्ही परी फिर से आई थी रिश्तेदार लोग आए
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कविताहम लड़के हैं जनाब, हमारे साथ ऐसा ही होता है कोई दहेज एक्ट में फंस जाता है कोई अतुल सुभाष की तरह घुट-घुट के मरता कोई मानव शर्मा की तरह पुरुषों की व्यथा कहता है कोई सौरव राजपूत की तरह ड्रम में कटा और मारा जाता है हम लड़के हैं जनाब, बचपन से घर की
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कविता“ये तीरगी मिटेगी उजाला भी आएगा यानी कि कामयाबी भरा सवेरा भी आएगा राहों की मुश्किलों सें हार मत मानना, तेरी मंज़िल मिलेगी मिलने का मज़ा भी आएगा l”
तीरगी मिटेगी उजाला भी आएगा Read More »
कविताजय श्री राम 🙏 🙏 खुल गए भाग्य हमारे पधारे श्री राम ,द्वारे हमारे अंगना रंगोली सजाओ हर घर में दीप जलाओ हर घर भगवा लहराओ करो स्वागत श्री राम प्रभु का भाग्य सब अपने जगाओ खुल गए भाग्य हमारे पधारे श्री राम प्रभु द्वारे हमारे बच्चे, बूढ़े,युवा सभी राम राम गुण गाओ खिल जाए
पधारे श्री राम प्रभु द्वारे हमारे Read More »
कविताकार्यक्रम में आये अतिथि का सत्कार है , फूल और गुलदस्ता से अतिथि का सत्कार है , हर क्षण , हर पल आये अतिथि का सत्कार है , चाय , नाश्ता , कॉफी से अतिथि का सत्कार है , कार्यक्रम में आये हुए अतिथि का सत्कार है । सॉल और चादर ओढ़ाकर अतिथि का सत्कार
आज का समाज चमकते स्क्रीन के पीछे, चेहरे छिपे हैं, सपनों के पीछे भागते, रिश्ते सिमटे हैं। शोर में डूबी चुप्पी, सच का आलम खोया, इंसानियत का आलम, बस किताबों में सोया। सड़कों पर भीड़ है, पर दिल हैं सुनसान, हर कदम पर सवाल, कहाँ गया इंसान? प्रगति की राह में, मूल्य पीछे छूटे, गर्व
रग रग में आस्था भरे भक्ति ज्योत हृदय जले करे पूजन माता के नौ रूपो का मन में श्रद्धा सुमन पुष्प लिए नव रंग ,नव रूप, नव साज लिए मन में उमंग और हृदय उल्लास लिए सुने हम गाथा माता की मन में विश्वास लिए ये है गाथा मां दुर्गा की नव स्वरूपों की नाम
निरंजना डांगे की कविता – माता के कालरात्रि स्वरूप की महिमा Read More »
कविताजरा ठहर ज्या ऐ जिंदगी, क्यूं भग रही है! जरा सुस्ता लेे, थकी सी लग रही है! क्यूं कर रही है जिद्द उम्र से……. जरा ख्याल रख अपना, उम्र भी ढल रही है!! तकाजा ए उम्र अब कुछ, मुनासिब नहीं है! चाहता है जिसको तूं वो, अब करीब नहीं है! उतर रही है ढलान में
पवन सुरोलिया “उपासक” की कविता – जरा ठहर जा जिंदगी……..!! Read More »
कविताआओ हम स्कूल चले नव भारत का निर्माण करें। छूट गया है जो बंधन भव का आओ मिलकर उसको पार करें, आओ हम स्कूल चले ….. जाकर स्कूल हम गुरुओं का मान करें बड़े बूढ़ों का कभी न हम अपमान करें, आओ हम स्कूल चले……. जाकर स्कूल हम दिल लगाकर पढ़ेंगे मौज मस्ती और खेलकूद
डॉ.राजीव डोगरा की कविता -आओ स्कूल चले Read More »
कविताकुछ अनकही सी बाते है कुछ खामोश सी ये राते है है अजीब सी बेचैनी दिल में कैसी ये उलझती हुई सी राते है नींद कोसों दूर हुई चकोर की इन नयनों से जब जहन् ये ख्याल आया उसका चांद है चंदानी की आगोश मे अधरों पर खामोशी है और अंखियों में नीर धारा सरिता
भारत भूमि कोटि कोटि प्रणाम हे भारत भूमि! तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम तेरी सात्विक धरा को बारम्बार प्रणाम।। तेरे उत्तर में हिमालय पर्वतमाला है, जिसका हर जर्रा मन मोहनेवाला है यहाँ गंगा और यमुना का पावन संगम यहाँ सभी चराचर स्थावर और जंगम यहीं अवतरित हुए श्रीकृष्ण व राम। भारत ऋषियों मुनियों की तपोभूमि है
मनोज कुमार व्यास की कविता – भारत भूमि कोटि-कोटि प्रणाम Read More »
कवितामां दुर्गा प्यारी मैया मेरी आ जाओ मेरे द्वार जीवन मेरा कर दो भव सागर पार मैया हम जन्म से तेरे है भक्त प्यारे तू सदा जीवन के दुख मिटा दे हमारे मैया तुमसे ही है यह जीवन हमारा मेरी मैया तुम ही हो मेरा जीवन सहारा मैया हम तेरे बालक बड़े अल्पज्ञानी मैया यें
आओ जागे नींद से फैला है दिनकर का मनहर आलोक मिटा अन्धकार हुआ धरा पर उजियारा आओ करे साहस चले राह करे मन से मन की बात मिले हम हो मिलन मिल कर गाये मंगल गान बना रहे साहस से मान न डरें न डरायें बनाये धरा को साहस से मन भावन सुन्दर उपवन हो
कवि वीरेंद्र कुमार की कविता – साहस Read More »
कवितास्कूल चलो चलो बच्चो, स्कूल चलो, ज्ञान की ज्योति जलाने चलो। अक्षर-अक्षर सीखेंगे हम, नव उजियारा पाएंगे हम। किताबों में छिपे हैं मोती, इनसे होगी मन की ज्योति। गिनती, कविता, खेल अनोखे, शिक्षा देंगे रूप अनूठे। माँ-बाबा का सपना प्यारा, पढ़-लिख बनना सितारा। आओ मिलकर वचन निभाएँ, नित्य स्कूल को रोज़ जाएँ। “विद्या ही सबसे
उत्साह हूँ आनंद हूँ अंधकार को चीरता रवि हूँ सत्य की झलक दिखाने वाला मित्रों मैं एक कवि हूँ सत्य पथ पर चलता हूँ आलोचना से कब डरता हूँ प्रेरित हो इस जगत से अपनी रचनाये लिखता हूं दिखाता सबकुछ समाज का धरती पर समाज का छवि हु सत्य की झलक दिखाने वाला मित्रो मैं
सत्य कि झलक दिखाने वाला Read More »
कवितामां का आंचल है संसार जिसमें है दुनिया का प्यार धूप लगे तो मां का आंचल घनी छांव बन जाता है भूख लगे तो मां का आंचल बच्चे का व्यंजन बन जाता है मां का आंचल प्रेम की छाया मां का आंचल प्रेम की धार मां के आंचल में सब सुख हैं मां का आंचल
माँ का आँचल है संसार Read More »
कवितातुम्हारे साथ रहकर जाना मैंने , हथेली में रेखाएं नहीं रंग होते हैं शामें बतियाती हैं , सहर संग खतों से भी झरते हैं , पारिजात के पुष्प तुम्हारे साथ रहकर जाना मैंने , कितना सुकून देती है , दुखों की चोरी कितना ज़रूरी है , किसी मोड़ पर ठहरना भी केवल मौन से ,
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कवितागरीबी…….!! अक्सर राह चलते बदतर हालात में भिखारी मिल जाते हैं! उनकी जिंदगी नर्क से भी अधिक बदतर होती हैं, जो उनके पिछले जन्मों के कुकर्म घोर पाप का दंड हैं, जो आज वर्तमान जीवन में विवश होकर लाचारी में जिंदगी काट रहे हैं…..!! कलम…. आतुर हो उठ चल पड़ी और चंद पंक्तियों को धागे
हाय रे ये गरीबी……..!! Read More »
कवितारचना – 1 रचना का शीर्षक-गृह लक्ष्मी बिन घर भी सूना लगता है। नारी जहां पूंजी जाए देवों का निवास हो, नारी जिस घर में सुख समृद्धि का वास हो। नारी बिन तो सब कुछ अधूरा लगता है, गृह लक्ष्मी बिन घर भी सूना लगता है।। 1/नारी हांड़ मांस का पुतला मात्रा नहीं है, अपनी
स्वर्णिम काव्य-कथा प्रतियोगिता Read More »
कविता