60 और 70 के दशक में एक शख्स ऐसा हुआ करता था जो कागजो का पुलिंदा बगल के दवाये हुए जब सांसद में प्रवेश करता था तो ट्रेजरी बेंच पर बैठने वालों की फूंक सरक जाया करती थी कि न जाने आज किसकी शामत आने वाली है
जी हाँ जिक्र हो रहा है समाजवादी आंदोलन के नेताओ में से एक मधु लिमये का बहुत से लोगो को उनसे चिढ़ होता था उनको लगता था 1979 में उनका बना बनाया खेल मधु लिमये की बजह से बिगड़ गया उधर समाजबादियो को भी डर लगा रहता था कि पता नही कुर्सी की दौड़ में जीतने के लिए वक्ती तिकड़मबाजिया मधु लिमये को कही नागवार न गुजरे
पेंशन के खिलाफ मधु लिमये तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थ के समय ही सुनाई देने वाली अंतरात्मा की आवाज के दौड़ में मधु लिमये लोकतंत्र आड़म्बरहीनता और साफ सार्वजनिक जीवन के पहरेदार बन गए थे मधु लिमये
आधुनिक भारत के वशिष्टतम ब्यक्तितो में से एक थे उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त करवाकर भारत में शामिल कराने के वह देश के लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के करिश्माई नेता थे वह अपनी विचारधारा के साथ कभी कोई समझोता नही किया ईमानदारी सादगी तपश्चर्या उच्च नैतिक गुणों से सम्पन्न होने के साथ साथ उनपर महात्मा गाँधी के शान्ति और अहिंसा के दर्शन का बहुत प्रभाव था जिसका उन्होंने जीवनभर अनुसरण किया
आज से सौ वर्ष पूर्व मधु लिमये का जन्म 1 मई 1922 को महाराष्ट्र के पूना में हुआ था पूना के फग्र्यूसन कॉलेज में उच्च शिक्षा के समय से ही उन्होंने छात्र आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया बाद में वह एस एम जोशी एन जी गोरे वगैरह के संपर्क में आये और अपने समकालीनों के साथ राष्टीय आंदोलन और समाजबादी विचारधारा के प्रति आकर्षित हुए
1939 में जब दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तो उन्होंने सोचा कि यह देश को उपनिवेशक शासन से मुक्त कराने का एक अवसर है लिहाजा अक्टूबर 1940 में उन्होंने विश्वयुद्ध के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया और अपने युद्ध विरोधी भाषणों के लिए गिरफ्तार किए गए अगस्त 1942 में महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आवाहन किया तो मधु लिमये वहां मौजूद थे यह पहला मौका था जब उन्होंने गाँधी जी को करीब से देखा उसी समय गाँधी जी समेत कॉग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और मधु लिमये अपने कुछ सहयोगियों के साथ भूमिगत हो गए और भूमिगत आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
मधु लिमये ने 1950 के दशक में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लिया जिसे उनके नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने 1946 में शुरू किया था
उपनिवेशबाद के कट्टर आलोचक मधु लिमये ने 1955 में एक बड़े सत्याग्रह का नेतृत्व किया था और गोवा में प्रवेश किया पेड़ने में पुर्तगाली पुलिस ने हिंसक रूप से सत्याग्रहियों पर हमला किया उन्हें पाँच महीने तक पुलिस हिरासत में रखा था दिसंबर 1955 में पुर्तगाली सैन्य न्याय अधिकरण ने उन्हें 12 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई लेकिन मधु लिमये ने न तो कोई बचाव पेश किया ना ही सजा के खिलाफ अपील की एक बार जब गोवा के जेल में थे तो उन्होंने लिखा था मैंने महसूस किया कि गाँधी जी ने मेरे जीवन को कितनी गहराई से बदल दिया है उन्होंने मेरे ब्यक्तित्व इच्छा शक्ति को कितनी गहराई से आकार दिया है उन्होंने जेल डायरी के रूप में एक पुस्तक गोवा लिवरेशन मूवमेंट मधु लिमये ने लिखी जो 1956 में गोवा आंदोलन के शुभारंभ की स्वर्णजयंती के अवसर पर प्रकाशित हुई और अब उसका दोबारा प्रकाशन किया गया है 1957 में पुर्तगाली हिरासत से छूटने के बाद भी मधु लिमये ने गोवा की मुक्ति के लिए जनता को एक जुट करना जारी रखा और विभिन्न वर्गों से समर्थन मांगा तथा भारत सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए आग्रह किया 1961 में गोवा आजाद होकर भारत का अभिन्न अंग बना
भारतीय संविधान और संसदीय मामलों के ज्ञाता मधु लिमये 1964 से 1979 तक चार बार लोक सभा के लिए चुने जाते रहे उन्हें संसदीय नियमो की प्रक्रिया और उसके उपयोग तथा विभिन्न विषयों की गहरी समझ थी
आज जब उनकी जन्म सदी शुरू हो रही है तो यह रेखांकित किया जा सकता है कि असाधारण राजनीतिक परिस्थितियां में भी उन्होंने अपने मूल्यों से कभी कोई समझौता नही किया आपातकाल के दौरान पांचवी लोकसभा के कार्यकाल के विस्तार के खिलाफ जेल से उनका विरोध इस बात की गवाही है वह जनता पार्टी के गठन और आपात काल के बाद केंद्र में सत्ता हासिल करने वाली गठबंधन में सक्रिय थे उन्हें मोरारजी सरकार में मंत्री पद भी देने का प्रस्ताव किया गया पर उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया मधु लिमये ने लोकसभा में भी अपने प्रदर्शन की तरह अपने लेखन में भी तार्किक निर्णायक निर्भीक और स्पष्ट रूप से तथ्यों को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पेश किया
संक्षिप्त बीमारी के बाद 72 वर्ष की आयु में 8 जनवरी 1995 को मधु लिमये का नई दिल्ली में निधन हो गया
(रवि कुमार बख्तियारपुर)