कविता

कुछ जुगनू जंगल में छोड़ आते हैं..

हंसना हंसाना ही है जिंदगी, जीने का मज़ा लीजिए, सोचने वाले बहुत तुम पर, उन पर ही छोड़ आते हैं! छोटी सी एक मुलाकात,बन जाती हर पल की यादें, यूँ मुलाक़ात उसे अजनबी समझ,चलो कर आते हैं! जो आज साथ हम सभी, कल क्या होगा पता नहीं, भुला सब दुश्मनी,चलो अपनों से गले मिल आते […]

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कविता
रसाल सिंह 'राही'

निस्वार्थ प्रेम

किसी के लिए हम जरूरी हैं तो किसी के लिए जरूरत कभी कभी ये सब समझने में सदियां लग जाती हैं कि क्या सही है और क्या गलत है कौन अपना है और कौन पराया है अपनी अमूल्य भावनाओं को ऐसी जगह खर्च करो यहां भावनाओं की क़द्र हो आपके कहे हुए शब्दों से किसी

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कविता

 हूँ हर पल साथ उसके, और आईने में तलाश रही….

है प्यार दिल में उसके मेरे, उसकी आँखें बता रही, कर रही है इनकार, पर दिल उसकी गवाही दे रही, जाऊँ जब सामने उसके मैं,छुप कर वो देखती रही! उसकी आँखों से लगे, है ख़्वाब मेरा ही देख रही! खुले केश तो लगे, जैसे आ गए काले बादल अभी, उसकी झील सी आँखें लगे, है

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कविता

पुरानी पेंशन

पुरानी पेंशन है सपना प्यारा, रिटायरमेंट में जीवन सहारा। अब आई नयी कहानी, एनपीएस की सुनो जुबानी। कहते हैं — “जमा करो बस पैसे, भविष्य बनेगा आपके जैसे!” फिर शेयर बाजार में झूला झूलो, कभी डूबो, कभी फलो-फूलो! यूपीएस भी खूब मजेदार, नाम बड़ा और दर्शन बेकार। कागज़ी घोड़े, दौड़ते दिन-रात, कर्मचारी दुखी होकर कहते

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कविता

समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा है

बहुत उजाला होने लगा है अपने इस आशियाने में, रखे हुए हैं कुछ जुगनू चलो जंगल में छोड़ आते हैं! समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा  है *प्रताप* यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं! प्यार मोहब्बत की बातें सब करते रहते हैं ज़िन्दगी में, क्यों न किसी अजनबी को भी चलो हम हंसा देते

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कविता

ये हम कहां दिल लगा बैठे……..

इश्क में हम ये क्या कर बैठे,ये हम कहां दिल लगा बैठे…….. इश्क में हम ये क्या कर बैठे, ये हम कहां दिल लगा बैठे!   ये क्या गुनाह कर बैठे, न जाने क्या हुआ दिल लगा बैठे, इश्क में हम ये क्या कर बैठे, ये हम कहां दिल लगा बैठे! हर दिन हर पल, यूं ही फिजाओं में घूमा करते थे 

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कविता

  है ख्वाहिश दिल की रहना तुम मेरे दिल में……

सफ़र कलम से,          “है ख्वाहिश दिल की,                         रहना तुम मेरे दिल में……   तुम जो हो मेरी ज़िन्दगी, हो मेरे दिल की तमन्ना भी, तुम ही हो मेरे बरसों की चाहत, मेरा दिल जुनून भी! रहते हो पास मेरे, फ़िर भी है ढूंढ़ती नज़रें मेरी तुम्हें, हो जाते ग़र मुझसे दूर, सपनों में भी दिल

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कविता

भारत देश महान है

।।भारत देश महान है।। उत्तर में हिमकिरीट सलोना दक्षिण में सागर धार है गंगा-यमुना से सिंचित भूमि की महिमा अपरंपार है ||1|| पूरब की है अरुणित धरती पश्चिम को बहती रेवा विशाल है मध्य भूमि पर शोभित मालवा अवंति बसे महाकाल हैं ||2|| भगत सिंह के लहू से सींचा गाँधी के सपनों का देश है

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कविता

यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं..

बहुत उजाला होने लगा है अपने इस आशियाने में, रखे हुए हैं कुछ जुगनू चलो जंगल में छोड़ आते हैं! समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा है *प्रताप* यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं! प्यार मोहब्बत की बातें सब करते रहते हैं ज़िन्दगी में, क्यों न किसी अजनबी को भी

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कविता

क्या हो गयी धरा राम की..?

इनका नाम डॉo ब्रजेश बर्णवाल है। इनका जन्म 10 जून 1993 को हुआ था। ये अशोक बर्णवाल एवं यशोदा देवी के संतान हैं। ये झारखण्ड राज्य के गिरिडीह में स्थित सिंघो गांव के निवासी हैं। इन्होंने सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातक, स्नातकोत्तर(गोल्ड मैडलिस्ट ), कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से शिक्षा स्नातक व ग्लोबल

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कविता

अपने झील सी आँखों और दिल में बसा रखी हो………

अपने झील सी आँखों और दिल में बसा रखी हो……… यूँ लगे अंधेरे को चीरती उजाला,चाँद की किरणें हो! अपने झील सी आँखों में,और दिल में बसा रखी हो, है हर ग़म को भुला देती, लगे मधुर राग की घुन हो, हैं शब्द मीठे मिश्री से, होंठ लगे रंगे गुलाबों सी हो! जब करती बातें

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कविता
रसाल सिंह 'राही'

मैं और तन्हाई

पसंद बहुत कुछ है मुझको पर चाहिये कुछ नहीं इश्क़ तो है मुझको उनसे पर मैं जताता नहीं मेरे इस दिल में अब क्या है मेरे इस दिल में कौन है यह भी जनता हूँ मैं मग़र हाले दिल सुनाता नहीं उस अजनबी से क्या है मेरा वास्ता क्या है मेरा रिश्ता आखिर कौन है

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कविता

पहलगाम : भर लो लहू में उबाल आज स्वराष्ट्र है पुकार रहा

हिन्द के नौजवानों आज हिंद है पुकार रहा भर लो लहू में उबाल आज स्वराष्ट्र है पुकार रहा खामोशी ये तोड़ सिंघ नाद बन गरजिए देश के शत्रुओं को शक्ति प्रबल ,अपनी दिखाइए खोए नन्हे पुष्प हमने नौजवान भी खोए कई बहनों की मांग चीखी नन्हें मुख से चीखे गूंजी चीखों को उन मासूमों की

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कविता

कविता – इंसानियत का अंत

धरा हिली, गगन रोया, लहू से भीगा पथ, पहलगाँव की वादियों में फैला आतंक रथ। भोले-भाले तीर्थ यात्री, श्रद्धा जिनकी शान, धर्म पूछ कर मार दिए, कैसा यह अपमान? काश्मीर की पावन धरती, फिर से पूछे सवाल, क्या ऐसे होंगे सपूत, जो बनें काल का भाल? काँप उठे ये दुश्मन सारे, जिनका धर्म है पाप,

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कविता

पहलगांव

मां भारती पुकारती उठो रे सूर साहसी। ना रहो तुम तुष्णीम् चुप्पी अपनी तोड़ दो जो उठाए धर्म पर शस्त्र पाद हस्त तोड़ दो। भारती पुकारती उठो रे सूर साहसी जो करे ये दुस्साहस शस्त्र उस पर वार दो भारती का नाम लेकर घर में जाके मार दो। भारती पुकारती उठो रे सूर साहसी उठो

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कविता

ज्यादा नहीं ये बस दो चार दिन तक चलेगा

ज्यादा नहीं ये बस दो चार दिन तक चलेगा ये पुलवामा 2.o है कुछ और दिन तक चलेगा गयी है जान बहुत सारे मासुम लोगों की ये अवाम का खून बस कुछ दिन तक खौला रहेगा करते रहेंगे ये सियासत दान सियासत हादसों पर भी! ये हादसा इनके चुनाव के प्रचार खत्म होने तक चलेगा

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कविता

हाइकु कविता

‘राना लिधौरी’ के #हाइकु:- (1) दुष्ट लोग तो, सदा कमी देखते। दूसरों में ही।। *** (2) दुख देखके सदा ही खुश होते। दूसरों में ही।। *** (3) खुद के दोष दूसरों में ही झाँके। खुद को आं आँके।। *** हाइकुकार- राजीव नामदेव “राना लिधौरी” संपादक “आकांक्षा” पत्रिका संपादक- ‘#अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका जिलाध्यक्ष म.प्र.

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कविता

अब तो हो बस आर या पार….. इस कविता ने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दिया , हर हिन्दुस्तानी को यह कविता जरूर पढ़नी चाहिए

कविता – है हर दिल की यही पुकार,अब तो हो बस आर या पार….. थी जो हरियाली से भरी, हमारी पावन धरती कभी, इन नापाक इरादों ने कर दिया इसे है खून से लाल! हर दिल धड़क रहा था, सुकून से इस धरा पर यारों, है आज बेचैन हर घर परिवार, इस धरती का लाल!

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कविता
किरण बैरवा

अश्रु रोके रुके नहीं – पहलगाम आतंकी हमले पर ये क्या लिख दिया मशहूर कवयित्री किरण बैरवा ने जो भी पढ़ा रो दिया आप भी पढ़ें

कविता – अश्रु रोके रुके नहीं भू अम्बर भी शर्मसार हुआ ये कैसा हमलावार हुआ बेजान शव रखा गोद में अश्रु रोके रुके नहीं छटपटा रहा तन मन जिसका अर्थ न कुछ रह जाता मौन हो गई प्रकृति जिसकी कश्मीर जो कहलाता   उठो तुम बताओ सबको सुकून कैसे खो गया हिंदू मुस्लिम के नाम

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कविता

हिन्दी दोहे- उदित करो शुभ कर्म

राना कहता आपसे,उदित करो शुभ कर्म। इसके पहले आपको,पड़े निभाना धर्म। हर कामों के धर्म हैं,जिनको कहें उसूल। राना होते है उदित,उसी तर्ज पर फूल।।   अंतराल से मित्र जब,आकर दे सम्मान। आज उदित कैसे हुए,हँसता राना आन।। अस्ताचल के बाद ही,सदा उदित हो भान। राना यह संसार का,सबसे सुंदर गान।।   अब गुदड़ी के

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कविता

युद्ध का बिगुल बजाओ

हम ही राम भी है जपते हम ही कृष्ण भी है जपते हम जपते हैं विष्णु हम ही शिव भी जपते   हम हिन्दू है शिव को भी है पूजते शिव है प्रलयकारी शिव है तांडव भी करते जब जब कोई अधर्म बड़े शिव नेत्र अपना तीसरा खोल वध उनका है करते   यही है

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कविता

पहलगाम आतंकी हमला

पहलगाम आतंकी हमला🥹🥹 सभी निर्दोष लोगों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏 अम्बर की गर्जना किंचित लगी रुद्र करुण स्वर के आगे देख खून से लथपत मासूमियत को बेजान धरा भी आलाप कर रही ईश्वर के आगे धर्म अधर्म का कैसा ये यहां खेल रच गया तूने सबको एक बनाया फिर मानव कैसे धर्म में बट गया

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कविता
निर्मेष

खोलो द्वार सीमाओं का

पहलगाम का सामूहिक ये भीषण नरसंहार, मांग रहा अपनो से ही अब अपनो का हिसाब। उनकी साफगोईयों का ये कैसा उनको सिला मिला , खामोश सिंह को कहि कायर तो नहीं समझ लिया। निकले निहत्थे वे सब थे जन्नत की एक सैर को , उनकी कब्रगाह बना दिया तूने ही उस जन्नत को। कभी सोचता

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कविता

हार मुझे कभी स्वीकार नहीं

समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया यही वजह रही, समय बार बार मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई जब जब उसने तोड़ा, तब तब मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया फिर उम्र भी मेरे आगे

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कविता
A calming image of the full moon rising over a tree silhouette during twilight.

तू मुझे चाँद सा लगता है

तू मुझे चाँद सा लगता है या यूँ कहूँ पूरा आसमान सा लगता है तेरा मुझको नहीं पता मगर… मुझको तू मेरे ईमान सा लगता है   तुझे मान चुका हु मैं आपनी दुनिया तु मुझे दुनिया जहांन सा लगता है तुझसे ही जुदी है मेरी सारी खुशिया तु मुझे मेरी खुशियो का सामान सा

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कविता
तिरंगा

पं.जमदग्नपुरी की कविता – नयन से खून है बहने लगा

अश्रु के बदले नयन से खून है बहने लगा| दुष्ट दरिन्दे म्लेच्छों ने किया है फिर से दगा|| डाला भून पूँछकर है नाम जान हिन्दू को बस| देख दोगलों की हरकत है हृदय धधकने लगा||   शांत था कश्मीर खुब खिल उठी थी वादियाँ| हो रही अजान थी खुब बज रही थी घंटियाँ|| आज शांती

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कविता

मन

जुड ही जाता हूँ किसी ना किसी रूप में उससे निहित है सकल जीवन का सार व भावों का सागर जिससे यादों की बारात लेकर कुछ अनकही बातों की यादें संजोकर नाचतें हुए स्मृतियाँ भी उसके अभावों में जैसे मन के मधुर पथ पर मंगल गीत गाती हो सकल तारामंडल भी दमकते हुए आलोक से

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कविता

भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ

(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें ) कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ, इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें

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कविता

सारे जग के सच्चे बच्चे

सारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के

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कविता

जीवन पथ

जीवन की परिभाषा सुन | आँखे हुई नम ,छलकी जलधारा || पग के कंटक छू कर | मन में एक आस भर आई || न विचलित हो पाऊ कभी मैं | पग पग संभल जाऊ चलू मैं एक नई डगर || दूर बादलो की छाँव में | देखूँ सूरज की उजली किरण || न ठंडी

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कविता

पुस्तक और हम

पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर

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कविता

चाहत के मोती

कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं

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कविता

प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

कवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले

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कविता

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में

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कविता

प्रतीक्षा

तेरी प्रतीक्षा में सजनि क्षण – क्षण बीतत जाए । पंथ निहारत थके नयन आशा – गागरि रीतत जाए ।। पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी और सुहानी रात ढ़ल चुकी । दिशा बदल चुकी पवन भी काल – गति कितनी बदल चुकी।। आए – गए मौसम यहॉं कई प्रियतम तुम नहीं आए । पंथ निहारत

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कविता

शहादत के सूरज

शहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते

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कविता

कल्पनाओं का वृक्ष

मन की भूमि पर अंकुरित हुआ एक नन्हा पौधा कितना कोमल,कितना प्यार,कितना सुंदर है ये पौधा जड़े गहरी, तना मजबूत, टहनियां झूल रही है मदमस्त सी परिश्रम की बूंदों से हर क्षण बढ़ रहा है ये पौधा एक दूजे को साथ लेकर बढ़ रही है टहनियां पाकर प्रीत हवा का झोंका झूम रही है टहनियां

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कविता
निर्मेष

नदियों का उधार

कस्बे के कोलाहल से दूर सिवान था सुदूर काम से लौटते मजदूर पर तुमसे मिलने का सुरूर I सुहानी सुरमयी शाम आज भी है याद तेजी से ढलती शाम चाँदनी आने को करती फ़रियाद I हमारे मिलन ने उसे रोक रखा था उसने तारों का वास्ता दिया उदास मैंने तुमको विदा किया। समय पंख लगा

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