दलसिंहसराय के इतिहास और संस्कृति पर आधारित नई किताब का विमोचन

प्रसिद्ध लेखक दीपक कुमार द्वारा लिखित “दलसिंहसराय: इतिहास, संस्कृति और धरोहर” नामक पुस्तक का हाल ही में विमोचन किया गया है। यह पुस्तक बिहार के छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कस्बे, दलसिंहसराय की समृद्ध धरोहर, ऐतिहासिक घटनाओं, और सामाजिक संरचना पर गहन प्रकाश डालती है। लेखक ने इस किताब में दलसिंहसराय की अनकही कहानियों, परंपराओं और संस्कृति […]

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पुस्तक समीक्षा

निरंजना डांगे की कविता – माता के कालरात्रि स्वरूप की महिमा

रग रग में आस्था भरे भक्ति ज्योत हृदय जले करे पूजन माता के नौ रूपो का मन में श्रद्धा सुमन पुष्प लिए नव रंग ,नव रूप, नव साज लिए मन में उमंग और हृदय उल्लास लिए सुने हम गाथा माता की मन में विश्वास लिए ये है गाथा मां दुर्गा की नव स्वरूपों की नाम

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कविता

पवन सुरोलिया “उपासक” की कविता – जरा ठहर जा जिंदगी……..!!

जरा ठहर ज्या ऐ जिंदगी, क्यूं भग रही है! जरा सुस्ता लेे, थकी सी लग रही है! क्यूं कर रही है जिद्द उम्र से……. जरा ख्याल रख अपना, उम्र भी ढल रही है!! तकाजा ए उम्र अब कुछ, मुनासिब नहीं है! चाहता है जिसको तूं वो, अब करीब नहीं है! उतर रही है ढलान में

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कविता

डॉ.राजीव डोगरा की कविता -आओ स्कूल चले

आओ हम स्कूल चले नव भारत का निर्माण करें। छूट गया है जो बंधन भव का आओ मिलकर उसको पार करें, आओ हम स्कूल चले ….. जाकर स्कूल हम गुरुओं का मान करें बड़े बूढ़ों का कभी न हम अपमान करें, आओ हम स्कूल चले……. जाकर स्कूल हम दिल लगाकर पढ़ेंगे मौज मस्ती और खेलकूद

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कविता

श्री जय प्रकाश वर्मा ऊर्फ कलामजी की कहानी- संगठन का महत्व

एक आदमी था, जो हमेशा अपने संगठन (समूह) में सक्रिय रहता था। उसे सभी जानते थे और उसका बड़ा मान-सम्मान होता था। लेकिन अचानक किसी कारणवश वह निष्क्रिय रहने लगा, मिलना-जुलना बंद कर दिया और संगठन से दूर हो गया। कुछ सप्ताह पश्चात, एक बहुत ही ठंडी रात में, उस संगठन के मुखिया ने उससे

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कहानी, लघुकथा

विभोर व्यास की कहानी- चौराहा

साहिल और रोशन एक प्राइवेट कंपनी के साक्षात्कार के दौरान एक-दूसरे से मिले और पता चला कि रोशन भी उसी सोसाइटी में रहने आया है जहाँ साहिल रहता है। साक्षात्कार में दोनों का ही चयन हो गया और थोड़ी जान-पहचान के बाद वे साथ-साथ ऑफिस जाने लगे। मिलनसार होने के साथ ही उनके विचार भी

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कहानी, लघुकथा

मंजरी सिन्हा की कहानी -दो दोस्त

रतनपुर गाँव के लोग बहुत ही सुखी और संपन्न थे। वहाँ चारो तरफ बहुत ही हरियाली और खुशहाली छायी हुई थी। उसी गाँव में बसंत और सुरेश नाम के दो अनाथ बच्चे भी रहा करते थे। दोनों के माता पिता हैजा की महामारी में काल के ग्रास बन गए थे। उसके बाद निकट के सगे

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कहानी, लघुकथा

डॉ . श्रीमती एस्तर ध्रुव ‘आशा’ की कहानी -मां

आज पगार का दिन है। माँ अंगीठी में कोयला डालकर बाबा का रास्ता देख रही थी। बाबा आज पगार लेकर आएंगे, तो माँ जल्दी से राशन लाकर खाना बनाएगी और मुनिया को खिलाएगी। मुनिया भूख के कारण बार-बार माँ से खाना माँग रही थी, पर माँ बेबस थी। किसी से उधार माँग भी नहीं सकती

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कहानी, लघुकथा

सोनिया दत्त पखरोलवी की कहानी-ख़्वाबों के जहाज़

उम्र के इस पड़ाव पर, जब टाँगें लड़खड़ा रही थीं और आँखें धुँधला चुकी थीं, हेमराज ने कभी नहीं सोचा था कि उनके अतीत के पन्ने यूँ अचानक पलट जाएँगे। एक सामाजिक समारोह में, भीड़ के बीच उनकी नज़र एक महिला पर पड़ी। उसका चेहरा देखते ही उनकी साँस थम-सी गई। वह शक्ल सुमन से

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कहानी, लघुकथा

डॉ. नीरज पखरोलवी की कहानी-अपने हिस्से की छाँव

हर साल गाँव के बुज़ुर्ग मेरे पास 15-एच फॉर्म भरवाने आते हैं। यह सिलसिला उनके जीवन की अनकही कहानियों और अनुभवों को सुनने का ज़रिया बन गया है। उनके साथ बिताए ये कुछ पल उनकी ज़िंदगी के उन पहलुओं को सामने लाते हैं, जो अक्सर अनकहे रह जाते हैं। लेकिन इस बार, कुछ परिचित चेहरे

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कहानी, लघुकथा

डॉ. हरदीप कौर ‘दीप’ की कहानी – विवाह

“सोनिया, मैंने कहा है कि मेरे साथ भाग चल, पर तू है कि मानती ही नहीं!” टिंकू ने सोनिया से कहा। तो सोनिया ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैंने तुमसे प्यार किया है, कोई चोरी नहीं की है। जब मेरे माता-पिता मान गए हैं, तो तुम्हारे माता-पिता भी मान जाएंगे।” टिंकू

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कहानी, लघुकथा

श्रीमती रम्भा शाह की कहानी – काफल पक्कू

“काफल पक्कू” उत्तराखंड का एक पक्षी है। इस पक्षी के बारे में पुराणों में एक कथा प्रचलित है। एक समय की बात है, चैत का महीना था और बहुत सारे काफल फल पक चुके थे। उत्तराखंड के एक गाँव में एक माँ और बेटी जंगल गए। घास और लकड़ी इकट्ठा करने के बाद उन्होंने काफल

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कहानी, लघुकथा

महादेव मुंडा की कहानी – मैं अमरूद का पेड़ हूँ

तब हम काफ़ी छोटे थे। उस लंबी-चौड़ी, दूर तक फैली खिलखिलाती हरियाली से भरी नर्सरी में मेरा जन्म हुआ था। उस समय हमारी अवस्था मात्र एक शिशु पौधे की थी। उस सुंदर से आहाते में मेरे जैसे कई मित्र थे—आम, जामुन, नाशपाती, खजूर, अनार, शरीफा, लीची, काजू आदि। हम अलग-अलग क्यारियों में सजे होते। हवा

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कहानी

बिनोद कुमार सिंह की कहानी – बिना सिर वाला आदमी

सुबह के तक़रीबन दस बज रहे थे। लगभग अस्सी वर्षीय दादी बरामदे में बैठी पक्की सड़क की तरफ निरंतर देख रही थीं। सड़क पर आते-जाते लोग उन्हें परछाई की तरह दिखाई दे रहे थे। आज सुबह ही उनके छोटे पोते ने उनका चश्मा तोड़ दिया था। अभी कुछ ही देर हुई थी कि सड़क पर

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कहानी, लघुकथा

चैन मौर्य की कहानी – बिल्ली की स्वामिभक्ति

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु आचार्य चाणक्य थे। उन्होंने एक बिल्ली पाल रखी थी, जो बहुत ही समझदार और स्वामिभक्त थी। आचार्य चाणक्य ने उस बिल्ली को दुनिया की सबसे उच्च कोटि की शिक्षा प्रदान की और उसे सभी प्रकार के नीति-नियम सिखाए। रणभूमि में वह बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। समय बीतता

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कहानी

डॉ. समीना क़ुरैशी की कहानी -भारत की अखंडता और विविधता

राजवीर नाम का एक युवा इतिहास का छात्र था, जिसे हमेशा से भारत की विविधता के बारे में जानने की गहरी रुचि थी। वह किताबों में पढ़ता था कि भारत दुनिया का सबसे विविधतापूर्ण देश है, जहाँ सैकड़ों भाषाएँ, धर्म, परंपराएँ और संस्कृतियाँ मिलकर एकता का प्रतीक बनती हैं। लेकिन उसके मन में एक सवाल

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कहानी

मीनू अग्रवाल की कहानी -पुरानी कुर्सी

बाबूराव अब 65 साल के हो गए थे। आँखों से कम दिखाई देता था, हाथ कंपकंपाते थे, और पैरों ने भी जवाब दे दिया था। घुटनों के दर्द के कारण बाबूराव को ज्यादा चलने-फिरने में परेशानी होती थी। परंतु आज भी बाबूराव जिंदादिली की मिसाल थे। अपनी ठहाकेदार हँसी से वे आज भी लोगों को

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कहानी, लघुकथा

कुछ अनकही सी बाते

कुछ अनकही सी बाते है कुछ खामोश सी ये राते है है अजीब सी बेचैनी दिल में कैसी ये उलझती हुई सी राते है नींद कोसों दूर हुई चकोर की इन नयनों से जब जहन् ये ख्याल आया उसका चांद है चंदानी की आगोश मे अधरों पर खामोशी है और अंखियों में नीर धारा सरिता

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कविता

यथार्थ की झलक

आप सभी मित्रों को मेरा नमस्कार 🙏🙏 आज की मेरी कहानी है” एक बुजुर्ग के मन के भावो” को और कुछ यथार्थ स्वरूप को उजागर करती हुई जो मैने दिनांक 14 नवम्बर 2024 को लिखी थी जब मैने लिखने की शुरुआत ही की थी तो कुछ त्रुटियां ही सकती है नीलू एक नर्सिंग ऑफिसर है

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लघुकथा

पी. यादव ‘ओज’ की कहानी – कठिन राह

कहते हैं, सोने को जितना अधिक आग में तपाओ, वह उतना ही अधिक चमकता है। ठीक उसी प्रकार हमारी ज़िंदगी भी है। ज़िंदगी के लिए आसान राह चुनना वास्तव में चुनौतियों को न्योता देना है, जबकि चुनौतियों का सामना करने से राह अपने आप आसान हो जाती है। कृष्णा नगर के पंडित श्यामाचरण जी की

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कहानी

पढ़ लिख कर काबिल बनो,मै मांझी मांझा सभालु

पढ़ लिख कर काबिल बनो नारी तुम अपना भविष्य गढ़ों समझो मोल किताबों का और अपने लिए किताबें चुनो छोड़ों चूड़ी ,कंगन, गहने सारे माणिक, मोती ,कुंदन सारे छोड़ो अभी श्रृंगार सारे नारी तुम पहले चुनो अपने लिए किताबें ज्ञान का एक दीपक जलाकर कर लो रोशन,भविष्य के अंधेरे कदमों में हो चाहत बढ़ने की

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कविता

वो कौन…

वो कौन… वो कौन है जिसने माँ की हथेलियों में दुआओं की नर्मी महसूस न की? वो कौन है जिसने उसकी गोद में सिर रखकर सारे ग़म हवा में न उड़ा दिए? जिसे उसकी आँखों की चिंता एक घने दरख़्त जैसी न लगी, जिसके साए में हर दर्द बेमानी हो जाता है। माँ… जो थकती

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कविता

मुस्कुराहटें

मुस्कुराहटें मुस्कुराहटें हैं जादू जैसी, हर दिल को बहला जाती हैं, टूटे हुए अरमानों पर भी, उम्मीदों के फूल खिलाती हैं। बिखर जाए जहाँ उदासी, और छा जाए वीरानियाँ, मुस्कुराहटें वहीं आकर, सजा देती हैं कहानियाँ। नन्हे बच्चे की हँसी में, कोई जन्नत झलकती है, थके हुए चेहरे पे जैसे, चाँदनी-सी चमकती है। कभी ये

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कविता

देखा जो तूने मुझे पहली बार

देखा जो तूने मुझे पहली बार , हाथ में कलम व कागज लेके , साहित्यकार फुर्सत के क्षण में , नदी किनारे व बगीचा में कुछ , शब्दों की माला सजाते हैं वो , देखा जो तूने मुझे पहली बार । हर कोई पाठक मेरी रचना को , जब देखते तब तारीफ करते हैं ,

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कविता

मनोज कुमार व्यास की कविता – भारत भूमि कोटि-कोटि प्रणाम

भारत भूमि कोटि कोटि प्रणाम हे भारत भूमि! तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम तेरी सात्विक धरा को बारम्बार प्रणाम।। तेरे उत्तर में हिमालय पर्वतमाला है, जिसका हर जर्रा मन मोहनेवाला है यहाँ गंगा और यमुना का पावन संगम यहाँ सभी चराचर स्थावर और जंगम यहीं अवतरित हुए श्रीकृष्ण व राम। भारत ऋषियों मुनियों की तपोभूमि है

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कविता

मां दुर्गा

मां दुर्गा प्यारी मैया मेरी आ जाओ मेरे द्वार जीवन मेरा कर दो भव सागर पार मैया हम जन्म से तेरे है भक्त प्यारे तू सदा जीवन के दुख मिटा दे हमारे मैया तुमसे ही है यह जीवन हमारा मेरी मैया तुम ही हो मेरा जीवन सहारा मैया हम तेरे बालक बड़े अल्पज्ञानी मैया यें

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कविता

1.औंधा घड़ा (मूर्खता) ,2.कविताएं कुछ कहती है

कविता १ औंधा घड़ा (मूर्खता) वाह री बिटिया तू गजब करे है औंधे घट (मटका)में नीर भरे है नफरत की इस वैली (घाटी)में तू प्रीत का बहता झरना ढूंढे हैं वाह री बिटिया तू गजब करे है औंधे घट में नीर भरे है कोन रख विश्वास तू मन में कांटो मध्य भीं फूल ढूंढे है

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कविता

कवि वीरेंद्र कुमार की कविता – साहस

आओ जागे नींद से फैला है दिनकर का मनहर आलोक मिटा अन्धकार हुआ धरा पर उजियारा आओ करे साहस चले राह करे मन से मन की बात मिले हम हो मिलन मिल कर गाये मंगल गान बना रहे साहस से मान न डरें न डरायें बनाये धरा को साहस से मन भावन सुन्दर उपवन हो

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कविता

स्कूल चलो

स्कूल चलो चलो बच्चो, स्कूल चलो, ज्ञान की ज्योति जलाने चलो। अक्षर-अक्षर सीखेंगे हम, नव उजियारा पाएंगे हम। किताबों में छिपे हैं मोती, इनसे होगी मन की ज्योति। गिनती, कविता, खेल अनोखे, शिक्षा देंगे रूप अनूठे। माँ-बाबा का सपना प्यारा, पढ़-लिख बनना सितारा। आओ मिलकर वचन निभाएँ, नित्य स्कूल को रोज़ जाएँ। “विद्या ही सबसे

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कविता

चलो याद आया

चलो याद आया* तुम मुझे याद मत आया करो देखते आँसू मत बहाया करो नफरत भी आजमाया करो एक समय ने ही संभाला था हर समय को आजमाया करो। देख लेंगे हम बस दिल को समझाया करो न हरकत न कोई दहसत को भुलाया करो जब मेरी याद आती है आँखों भींगाया करो एक वक्त

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कविता

माँ , खौंच्छा, कसूरवार,

#मां कल बालकनी में, मादा कबूतर को अपने नन्हों को सुरक्षित करते देखा शांत भाव से अपने पंख फैलाकर चूजों को आलिंगन किए देखा वह बेजुबान पक्षी हर मुसीबत से डटने को तैयार है क्योंकि वह मां है जब तक उसके बच्चे उड़ना नहीं सीखते हैं तबतक वह करूणामयी मां उनकी पहरेदारी करती है अपने

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कविता, लघुकथा

सत्य कि झलक दिखाने वाला

उत्साह हूँ आनंद हूँ अंधकार को चीरता रवि हूँ सत्य की झलक दिखाने वाला मित्रों मैं एक कवि हूँ सत्य पथ पर चलता हूँ आलोचना से कब डरता हूँ प्रेरित हो इस जगत से अपनी रचनाये लिखता हूं दिखाता सबकुछ समाज का धरती पर समाज का छवि हु सत्य की झलक दिखाने वाला मित्रो मैं

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कविता

मधु लिमये

60 और 70 के दशक में एक शख्स ऐसा हुआ करता था जो कागजो का पुलिंदा बगल के दवाये हुए जब सांसद में प्रवेश करता था तो ट्रेजरी बेंच पर बैठने वालों की फूंक सरक जाया करती थी कि न जाने आज किसकी शामत आने वाली है जी हाँ जिक्र हो रहा है समाजवादी आंदोलन

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आलेख

विधि विधान प्रबल है

शीर्षक:- विधि विधान प्रबल है…….!! एक बार पृथ्वी पर देवताओं का सम्मेलन आयोजित किया गया और उस सम्मेलन में देवलोक से सभी देवताओं ने हिस्सा लिया! सभी देवता अपने अपने वाहनों से सम्मेलन में भाग लेने के लिए देवलोक से पृथ्वी पर आ रहे थे! उसी समय पर सम्मेलन में भाग लेने के लिए सूर्यपुत्र

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कहानी

माँ का आँचल है संसार

मां का आंचल है संसार जिसमें है दुनिया का प्यार धूप लगे तो मां का आंचल घनी छांव बन जाता है भूख लगे तो मां का आंचल बच्चे का व्यंजन बन जाता है मां का आंचल प्रेम की छाया मां का आंचल प्रेम की धार मां के आंचल में सब सुख हैं मां का आंचल

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कविता

तुम्हारे साथ रहकर जाना मैंने

तुम्हारे साथ रहकर जाना मैंने , हथेली में रेखाएं नहीं रंग होते हैं शामें बतियाती हैं , सहर संग खतों से भी झरते हैं , पारिजात के पुष्प तुम्हारे साथ रहकर जाना मैंने , कितना सुकून देती है , दुखों की चोरी कितना ज़रूरी है , किसी मोड़ पर ठहरना भी केवल मौन से ,

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कविता

हाय रे ये गरीबी……..!!

गरीबी…….!! अक्सर राह चलते बदतर हालात में भिखारी मिल जाते हैं! उनकी जिंदगी नर्क से भी अधिक बदतर होती हैं, जो उनके पिछले जन्मों के कुकर्म घोर पाप का दंड हैं, जो आज वर्तमान जीवन में विवश होकर लाचारी में जिंदगी काट रहे हैं…..!! कलम…. आतुर हो उठ चल पड़ी और चंद पंक्तियों को धागे

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कविता

कर्म – उत्थान पतन का मुख्य स्रोत……..

कर्म – उत्थान पतन का मुख्य स्रोत…….!! दिन को अपने प्रकाश पर अंहकार था! उसको यह भ्रमजाल हो गया था कि मैं प्रकाश हूं और मेरी वजह से पूरा विश्व प्रकाशमय है! उसको अपने प्रकाश पर यह अहंकार हो गया था कि मैं अगर प्रकाश ना करूं तो संसार अंधकार के गर्त में चला जायेगा!

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लघुकथा
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