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दास्तान-ए-एहबाब

दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है

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A calming image of the full moon rising over a tree silhouette during twilight.

तू मुझे चाँद सा लगता है

तू मुझे चाँद सा लगता है या यूँ कहूँ पूरा आसमान सा लगता है तेरा मुझको नहीं पता मगर… मुझको तू मेरे ईमान सा लगता है   तुझे मान चुका हु मैं आपनी दुनिया तु मुझे दुनिया जहांन सा लगता है तुझसे ही जुदी है मेरी सारी खुशिया तु मुझे मेरी खुशियो का सामान सा

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मन

जुड ही जाता हूँ किसी ना किसी रूप में उससे निहित है सकल जीवन का सार व भावों का सागर जिससे यादों की बारात लेकर कुछ अनकही बातों की यादें संजोकर नाचतें हुए स्मृतियाँ भी उसके अभावों में जैसे मन के मधुर पथ पर मंगल गीत गाती हो सकल तारामंडल भी दमकते हुए आलोक से

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भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ

(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें ) कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ, इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें

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सारे जग के सच्चे बच्चे

सारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के

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जीवन पथ

जीवन की परिभाषा सुन | आँखे हुई नम ,छलकी जलधारा || पग के कंटक छू कर | मन में एक आस भर आई || न विचलित हो पाऊ कभी मैं | पग पग संभल जाऊ चलू मैं एक नई डगर || दूर बादलो की छाँव में | देखूँ सूरज की उजली किरण || न ठंडी

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पुस्तक और हम

पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर

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चाहत के मोती

कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं

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प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो

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