हिन्दी दोहे- उदित करो शुभ कर्म

राना कहता आपसे,उदित करो शुभ कर्म। इसके पहले आपको,पड़े निभाना धर्म। हर कामों के धर्म हैं,जिनको कहें उसूल। राना होते है उदित,उसी तर्ज पर फूल।।   अंतराल से मित्र जब,आकर दे सम्मान। आज उदित कैसे हुए,हँसता राना आन।। अस्ताचल के बाद ही,सदा उदित हो भान। राना यह संसार का,सबसे सुंदर गान।।   अब गुदड़ी के […]

हिन्दी दोहे- उदित करो शुभ कर्म Read More »

कविता

कहानी:  अजनबी खिड़की

रेखा को वो पुराना घर किराए पर मिला था—शहर की हलचल से थोड़ा दूर, शांत और पेड़ों से घिरा हुआ। एक लेखक के लिए इससे अच्छी जगह क्या होती? एकांत, शांति और समय। घर में सब कुछ ठीक था, बस ऊपर की एक खिड़की अजीब लगती थी। वो खिड़की बाहर की ओर खुलती थी, लेकिन

कहानी:  अजनबी खिड़की Read More »

कहानी

युद्ध का बिगुल बजाओ

हम ही राम भी है जपते हम ही कृष्ण भी है जपते हम जपते हैं विष्णु हम ही शिव भी जपते   हम हिन्दू है शिव को भी है पूजते शिव है प्रलयकारी शिव है तांडव भी करते जब जब कोई अधर्म बड़े शिव नेत्र अपना तीसरा खोल वध उनका है करते   यही है

युद्ध का बिगुल बजाओ Read More »

कविता

पहलगाम आतंकी हमला

पहलगाम आतंकी हमला🥹🥹 सभी निर्दोष लोगों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏 अम्बर की गर्जना किंचित लगी रुद्र करुण स्वर के आगे देख खून से लथपत मासूमियत को बेजान धरा भी आलाप कर रही ईश्वर के आगे धर्म अधर्म का कैसा ये यहां खेल रच गया तूने सबको एक बनाया फिर मानव कैसे धर्म में बट गया

पहलगाम आतंकी हमला Read More »

कविता
निर्मेष

खोलो द्वार सीमाओं का

पहलगाम का सामूहिक ये भीषण नरसंहार, मांग रहा अपनो से ही अब अपनो का हिसाब। उनकी साफगोईयों का ये कैसा उनको सिला मिला , खामोश सिंह को कहि कायर तो नहीं समझ लिया। निकले निहत्थे वे सब थे जन्नत की एक सैर को , उनकी कब्रगाह बना दिया तूने ही उस जन्नत को। कभी सोचता

खोलो द्वार सीमाओं का Read More »

कविता

दास्तान-ए-एहबाब

दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है

दास्तान-ए-एहबाब Read More »

ग़ज़ल

हार मुझे कभी स्वीकार नहीं

समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया यही वजह रही, समय बार बार मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई जब जब उसने तोड़ा, तब तब मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया फिर उम्र भी मेरे आगे

हार मुझे कभी स्वीकार नहीं Read More »

कविता

डा.नरेश कुमार ‘सागर’ की ग़ज़ल – खामोशी अब अच्छी नहीं सरकार जी..?

आखिर कब तक, शोक मनाऊं मुझको ये बतला देना ? एक बार ज़ालिम चेहरों को, हमको भी दिखला देना।। पहले कुछ पूछेंगे उनसे, मानवता दिख लाएंगे। सच ना बोला गर वो कातिल, टुकड़ों में बट बाएंगे।।   आखिर कब तक खूनी खेल ये, घाटी में खेला जाएगा ? मेरे घर में घर वालों को ,कब

डा.नरेश कुमार ‘सागर’ की ग़ज़ल – खामोशी अब अच्छी नहीं सरकार जी..? Read More »

ग़ज़ल
A calming image of the full moon rising over a tree silhouette during twilight.

तू मुझे चाँद सा लगता है

तू मुझे चाँद सा लगता है या यूँ कहूँ पूरा आसमान सा लगता है तेरा मुझको नहीं पता मगर… मुझको तू मेरे ईमान सा लगता है   तुझे मान चुका हु मैं आपनी दुनिया तु मुझे दुनिया जहांन सा लगता है तुझसे ही जुदी है मेरी सारी खुशिया तु मुझे मेरी खुशियो का सामान सा

तू मुझे चाँद सा लगता है Read More »

कविता

भाजपा भी कांग्रेस के नक्सेकदम पर

भाजपा से हम भारतीयों को बड़ी उम्मीद थी|भाजपा का भारत माता के प्रति प्रेम और उसका नारा हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्थान देख सुनकर हम भारतवासियों में यह उम्मीद जगी थी कि भाजपा को लायेंगे तो यह सभी भारतीयों में भारतीयता जगाकर सबको एक सूत्र में बाँधकर देश को आगे ले जायेगी|उन्नति के नये द्वार खोलेगी|जातिवाद भाषावाद

भाजपा भी कांग्रेस के नक्सेकदम पर Read More »

आलेख
तिरंगा

पं.जमदग्नपुरी की कविता – नयन से खून है बहने लगा

अश्रु के बदले नयन से खून है बहने लगा| दुष्ट दरिन्दे म्लेच्छों ने किया है फिर से दगा|| डाला भून पूँछकर है नाम जान हिन्दू को बस| देख दोगलों की हरकत है हृदय धधकने लगा||   शांत था कश्मीर खुब खिल उठी थी वादियाँ| हो रही अजान थी खुब बज रही थी घंटियाँ|| आज शांती

पं.जमदग्नपुरी की कविता – नयन से खून है बहने लगा Read More »

कविता

मन मौजी

शिखा सिंह। कई बार देखा है की लोग शराब का गिलास लेकर बैठ जाते हैं और उसके सहारे दुनिया भर का तनाव कम करने की जगह दो गुना तनाव और बड़ा लेते हैं। स्त्री हो या पुरुष शराब पीना अब आम बात हो गयी है पार्टी या शादी या किसी भी समारोह में शराब पीकर

मन मौजी Read More »

आलेख

मन

जुड ही जाता हूँ किसी ना किसी रूप में उससे निहित है सकल जीवन का सार व भावों का सागर जिससे यादों की बारात लेकर कुछ अनकही बातों की यादें संजोकर नाचतें हुए स्मृतियाँ भी उसके अभावों में जैसे मन के मधुर पथ पर मंगल गीत गाती हो सकल तारामंडल भी दमकते हुए आलोक से

मन Read More »

कविता

पथ भ्रष्ट होता विद्यार्थी

विद्यार्थी दो शब्दों विद्या तथा अर्थी के परस्पर मेल से बना है जिसका अर्थ होता है – ज्ञान अर्जन करने वाला। प्राचीन काल से ही यह बात चली आ रही है कि विद्यार्थी सदैव संकटों और अभावों में जीने वाला होता है। विद्यार्थी कम साधनों में ही अपने आपको निखार लेता है। ज्ञान अर्जन करने

पथ भ्रष्ट होता विद्यार्थी Read More »

आलेख

भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ

(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें ) कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ, इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें

भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ Read More »

कविता

सारे जग के सच्चे बच्चे

सारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के

सारे जग के सच्चे बच्चे Read More »

कविता

जीवन पथ

जीवन की परिभाषा सुन | आँखे हुई नम ,छलकी जलधारा || पग के कंटक छू कर | मन में एक आस भर आई || न विचलित हो पाऊ कभी मैं | पग पग संभल जाऊ चलू मैं एक नई डगर || दूर बादलो की छाँव में | देखूँ सूरज की उजली किरण || न ठंडी

जीवन पथ Read More »

कविता

पुस्तक और हम

पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर

पुस्तक और हम Read More »

कविता

चाहत के मोती

कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं

चाहत के मोती Read More »

कविता

देश रत्न अवॉर्ड 2025 से सम्मानित होंगे सैनिक/कवि गणपत लाल उदय

(नई दिल्ली)।  भारती युवा वेलफेयर एसोसिएशन और द भारत न्यूज ने गणपत लाल उदय अजमेर राजस्थान को प्रतिष्ठित “देश रत्न अवॉर्ड्स 2025” के लिए आमन्त्रित किया है। यह कार्यक्रम 29 अप्रेल 2025 को कमानी ऑडिटोरियम दूरदर्शन भवन मण्डी हाउस नई दिल्ली में आयोजित होगा। यह कार्यक्रम सामाजिक न्याय एवम अधिकारिता, रक्षा और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों 

देश रत्न अवॉर्ड 2025 से सम्मानित होंगे सैनिक/कवि गणपत लाल उदय Read More »

साहित्य समाचार

प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो

प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में Read More »

कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

कवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले

कवि की अभिलाषा Read More »

कविता

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम Read More »

कविता

प्रतीक्षा

तेरी प्रतीक्षा में सजनि क्षण – क्षण बीतत जाए । पंथ निहारत थके नयन आशा – गागरि रीतत जाए ।। पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी और सुहानी रात ढ़ल चुकी । दिशा बदल चुकी पवन भी काल – गति कितनी बदल चुकी।। आए – गए मौसम यहॉं कई प्रियतम तुम नहीं आए । पंथ निहारत

प्रतीक्षा Read More »

कविता

स्त्री का आत्मसम्मान के लिए संघर्ष

स्त्री की उड़ान अक्सर चुभती है कुछ नजरो को उसका खुद के आत्मसम्मान के लिए लड़ना तूफान सा मचा देता है जैसे खामोश सरोवर में किसी ने अपनी इच्छा का एक सिक्का उछाल कर उसमें हलचल मचा दी हो, जब तक वो खामोश हों झेलती है सब कुछ वो एक अच्छी बहु ,बेटी,ग्रहणी कहलातीं है

स्त्री का आत्मसम्मान के लिए संघर्ष Read More »

आलेख

शहादत के सूरज

शहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते

शहादत के सूरज Read More »

कविता

चांद रात

हर तरफ थी रौशनी हर तरफ था उजाला एक  मेरे ही  घर अंधेरा  था चांद रात को गुल खिल गई थी कली मुस्करा रही थी एक मैं ही उदास  बैठा था चांद रात को मैं तुम्हारी जिंदगी की सलामती के लिए बाबर तुम्हारा सदाका  निकाल रहा था चांद रात को तेरे बगैर कैसी होगी इस

चांद रात Read More »

ग़ज़ल

कल्पनाओं का वृक्ष

मन की भूमि पर अंकुरित हुआ एक नन्हा पौधा कितना कोमल,कितना प्यार,कितना सुंदर है ये पौधा जड़े गहरी, तना मजबूत, टहनियां झूल रही है मदमस्त सी परिश्रम की बूंदों से हर क्षण बढ़ रहा है ये पौधा एक दूजे को साथ लेकर बढ़ रही है टहनियां पाकर प्रीत हवा का झोंका झूम रही है टहनियां

कल्पनाओं का वृक्ष Read More »

कविता
निर्मेष

नदियों का उधार

कस्बे के कोलाहल से दूर सिवान था सुदूर काम से लौटते मजदूर पर तुमसे मिलने का सुरूर I सुहानी सुरमयी शाम आज भी है याद तेजी से ढलती शाम चाँदनी आने को करती फ़रियाद I हमारे मिलन ने उसे रोक रखा था उसने तारों का वास्ता दिया उदास मैंने तुमको विदा किया। समय पंख लगा

नदियों का उधार Read More »

कविता

मैंने लिखा इसलिए नहीं….

लिखना चाहता अगर समाज को, मैं तो, लिख देता सारे अच्छाइयों को कुछ चंद आधे पन्ने पर तनिक सा स्याही समाप्त होता बस, क्योंकि, बहुत कम है अच्छाई इस समाज में… लिखा इसलिए नहीं, क्योंकि पल भर में ही समाप्त हो जाते पन्ने और स्याही मेरे अगर करता मैं वर्णन बुराईयों का, शायद बहुत बुराइयां

मैंने लिखा इसलिए नहीं…. Read More »

कविता
दुर्दिन

दुर्दिन

” भाई जरा वो वाली साड़ी निकालना ” दुकानदार से यह कहते हुए जिग्नेश अन्य वस्तुओं की खरीद दारी में लग गया। घर से मां का फोन आया था की ” जिगर बबुआ इस बार होली पर जरूर से आ जाओ , बहुत दिन होइ गवा तुमका देखे। हाँ मां उसे प्यार से जिगर ही

दुर्दिन Read More »

कहानी

Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है

Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है इसके पहले लोग हर प्रश्न का प्रामाणिक जवाब गूगल बाबा से पूँछने में पूरी सुविधा समझते और भरोसा करते थे, Googal भी अपने भीतर की ढेर सारी संग्रहित सामग्री से छाँट कर आपको जिज्ञासा शान्ति उपलब्ध कराता है, वही काम अब Grok

Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है Read More »

आलेख
रसाल सिंह 'राही'

ग़ज़ल

ग़ज़ल.. कि उसने बात दिल की ना कही होती हमें भी तो मुहब्बत ही नहीं होती अग़र मैं ज़िन्दगी को ज़िन्दगी लिखता नहीं मुझ से खफा यह ज़िन्दगी होती कभी होता नहीं यह दिल खफ़ा उससे हमारी बात उसने ग़र सुनी होती हमें भाते नहीं हमको सताते जो नहीं उनसे हमें अब दिल लगी होती

ग़ज़ल Read More »

ग़ज़ल

विजय गर्ग की कहानी- भेंट

बूढ़े की श्रद्धा देखकर रंजन साहब भावुक हो उठे। जाने क्यों कोने पड़े उपहारों की ढेरी में सबसे कीमती उपहार गठरी में बंधे ये चावल ही जान पड़े। गठरी भी कैसी बिल्कुल दीन-हीन अवस्था में। एक बारगी लगा जैसे सुदामा आ गए हों कृष्ण की द्वारिका में और कृष्ण ने सुदामा की चावल से भरी

विजय गर्ग की कहानी- भेंट Read More »

कहानी

नाजुक मन की उलझनें

विजय गर्ग। जीवन का प्रथम सोपान बचपन स्नेह, प्यार, ममता और नटखटपन में कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता । घर-परिवार में बच्चों की आमद, किलकारी और शरारतें घर के बड़ों को आह्लादित और आनंदित करती हैं। उनके साथ बिताए हुए पलों की अल्बम को जब भी खोला जाए, एक विशेष प्रकार की

नाजुक मन की उलझनें Read More »

आलेख
इंजी. रत्नेश गुप्ता

पीली बसें

सड़क पर दौड़ती पीली बसें नोनीहालों को ले जाती पीले बसें सड़क पर मौत का तांडव नजर आती पीली बसें बेतारतीब दौड़ती पीली बसें ट्रैफिक नियम को धता बताती पीली बसें सकरी गलियों में दौड़ती पीली बसें

पीली बसें Read More »

कविता
देहरादून की बेटी का सम्मान मुम्बई धरती पर हुआ

देहरादून की बेटी का सम्मान मुम्बई धरती पर हुआ

इंकलाब पब्लिकेशन । देहरादून उत्तराखण्ड की बेटी कवयित्री सौ.संतोषी दीक्षित जी का सम्मान श्रीरामजानकी मंदिर खाड़ी नं.3 साकीनाका 90 फुट रोड मुम्बई की धरती पर अंतर्राष्ट्रीय संस्था काव्यसृजन व अखिल भारतीय काव्य मंच के संयुक्त तत्वाधान में किया गया|संस्था द्वय ने शाल श्रीफल व पुष्पगुच्छ से सम्मान किया| उनके सम्मान में संस्था द्वय ने “एक

देहरादून की बेटी का सम्मान मुम्बई धरती पर हुआ Read More »

साहित्य समाचार
किरण बैरवा

किरण बैरवा की कविताएँ

वो ही तो हूँ मैं   गुजार दिए होंगे दिवस, मास, वर्ष जो एक रात ना कट सके, वो पल ही तो हूँ मैं जाने कितने ही लोगों से कितनी ही दफां की होगी बातें हृदय की सुन सकूॅं, वो शख्स ही तो हूँ मैं जीवन में बिताए है हसीन पल सबके साथ जो कभी

किरण बैरवा की कविताएँ Read More »

कविता
मोनिका नौटियाल

हम और बचपन

बचपन की मीठी यादों को हम दिल में लिये चलते हैं | जिस घर में रहा करते थे उस घर को याद किया करते हैं || माँ के हाथो से पिटाई पापा के हाथों से मिठाई | बहिन भाई से लड़ाई उन सभी बातो को याद किया करते हैं || बचपन भी क्या था, न

हम और बचपन Read More »

कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

जब तुम इस धरा पर आई थी

जब तुम इस धरा पर आई थी घर में मातम छाया था तुम्हारी दीदी के बाद एक और लड़की घर में आई थी मम्मी के चेहरे पर दबी हुई खुशी थी एक गुड़िया के रूप में उनकी छवि फिर से आई थी पापा के लिए एक नन्ही परी फिर से आई थी रिश्तेदार लोग आए

जब तुम इस धरा पर आई थी Read More »

कविता
Shopping Cart
Scroll to Top