तिरंगा

पं.जमदग्नपुरी की कविता – नयन से खून है बहने लगा

अश्रु के बदले नयन से खून है बहने लगा| दुष्ट दरिन्दे म्लेच्छों ने किया है फिर से दगा|| डाला भून पूँछकर है नाम जान हिन्दू को बस| देख दोगलों की हरकत है हृदय धधकने लगा||   शांत था कश्मीर खुब खिल उठी थी वादियाँ| हो रही अजान थी खुब बज रही थी घंटियाँ|| आज शांती […]

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कविता

मन मौजी

शिखा सिंह। कई बार देखा है की लोग शराब का गिलास लेकर बैठ जाते हैं और उसके सहारे दुनिया भर का तनाव कम करने की जगह दो गुना तनाव और बड़ा लेते हैं। स्त्री हो या पुरुष शराब पीना अब आम बात हो गयी है पार्टी या शादी या किसी भी समारोह में शराब पीकर

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आलेख

मन

जुड ही जाता हूँ किसी ना किसी रूप में उससे निहित है सकल जीवन का सार व भावों का सागर जिससे यादों की बारात लेकर कुछ अनकही बातों की यादें संजोकर नाचतें हुए स्मृतियाँ भी उसके अभावों में जैसे मन के मधुर पथ पर मंगल गीत गाती हो सकल तारामंडल भी दमकते हुए आलोक से

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कविता

पथ भ्रष्ट होता विद्यार्थी

विद्यार्थी दो शब्दों विद्या तथा अर्थी के परस्पर मेल से बना है जिसका अर्थ होता है – ज्ञान अर्जन करने वाला। प्राचीन काल से ही यह बात चली आ रही है कि विद्यार्थी सदैव संकटों और अभावों में जीने वाला होता है। विद्यार्थी कम साधनों में ही अपने आपको निखार लेता है। ज्ञान अर्जन करने

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आलेख

भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ

(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें ) कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ, इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें

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कविता

सारे जग के सच्चे बच्चे

सारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के

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कविता

जीवन पथ

जीवन की परिभाषा सुन | आँखे हुई नम ,छलकी जलधारा || पग के कंटक छू कर | मन में एक आस भर आई || न विचलित हो पाऊ कभी मैं | पग पग संभल जाऊ चलू मैं एक नई डगर || दूर बादलो की छाँव में | देखूँ सूरज की उजली किरण || न ठंडी

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कविता

पुस्तक और हम

पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर

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कविता

चाहत के मोती

कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं

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कविता

देश रत्न अवॉर्ड 2025 से सम्मानित होंगे सैनिक/कवि गणपत लाल उदय

(नई दिल्ली)।  भारती युवा वेलफेयर एसोसिएशन और द भारत न्यूज ने गणपत लाल उदय अजमेर राजस्थान को प्रतिष्ठित “देश रत्न अवॉर्ड्स 2025” के लिए आमन्त्रित किया है। यह कार्यक्रम 29 अप्रेल 2025 को कमानी ऑडिटोरियम दूरदर्शन भवन मण्डी हाउस नई दिल्ली में आयोजित होगा। यह कार्यक्रम सामाजिक न्याय एवम अधिकारिता, रक्षा और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों 

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साहित्य समाचार

प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

कवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले

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कविता

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में

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कविता

प्रतीक्षा

तेरी प्रतीक्षा में सजनि क्षण – क्षण बीतत जाए । पंथ निहारत थके नयन आशा – गागरि रीतत जाए ।। पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी और सुहानी रात ढ़ल चुकी । दिशा बदल चुकी पवन भी काल – गति कितनी बदल चुकी।। आए – गए मौसम यहॉं कई प्रियतम तुम नहीं आए । पंथ निहारत

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कविता

स्त्री का आत्मसम्मान के लिए संघर्ष

स्त्री की उड़ान अक्सर चुभती है कुछ नजरो को उसका खुद के आत्मसम्मान के लिए लड़ना तूफान सा मचा देता है जैसे खामोश सरोवर में किसी ने अपनी इच्छा का एक सिक्का उछाल कर उसमें हलचल मचा दी हो, जब तक वो खामोश हों झेलती है सब कुछ वो एक अच्छी बहु ,बेटी,ग्रहणी कहलातीं है

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आलेख

शहादत के सूरज

शहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते

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कविता

चांद रात

हर तरफ थी रौशनी हर तरफ था उजाला एक  मेरे ही  घर अंधेरा  था चांद रात को गुल खिल गई थी कली मुस्करा रही थी एक मैं ही उदास  बैठा था चांद रात को मैं तुम्हारी जिंदगी की सलामती के लिए बाबर तुम्हारा सदाका  निकाल रहा था चांद रात को तेरे बगैर कैसी होगी इस

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ग़ज़ल

कल्पनाओं का वृक्ष

मन की भूमि पर अंकुरित हुआ एक नन्हा पौधा कितना कोमल,कितना प्यार,कितना सुंदर है ये पौधा जड़े गहरी, तना मजबूत, टहनियां झूल रही है मदमस्त सी परिश्रम की बूंदों से हर क्षण बढ़ रहा है ये पौधा एक दूजे को साथ लेकर बढ़ रही है टहनियां पाकर प्रीत हवा का झोंका झूम रही है टहनियां

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कविता
निर्मेष

नदियों का उधार

कस्बे के कोलाहल से दूर सिवान था सुदूर काम से लौटते मजदूर पर तुमसे मिलने का सुरूर I सुहानी सुरमयी शाम आज भी है याद तेजी से ढलती शाम चाँदनी आने को करती फ़रियाद I हमारे मिलन ने उसे रोक रखा था उसने तारों का वास्ता दिया उदास मैंने तुमको विदा किया। समय पंख लगा

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कविता

मैंने लिखा इसलिए नहीं….

लिखना चाहता अगर समाज को, मैं तो, लिख देता सारे अच्छाइयों को कुछ चंद आधे पन्ने पर तनिक सा स्याही समाप्त होता बस, क्योंकि, बहुत कम है अच्छाई इस समाज में… लिखा इसलिए नहीं, क्योंकि पल भर में ही समाप्त हो जाते पन्ने और स्याही मेरे अगर करता मैं वर्णन बुराईयों का, शायद बहुत बुराइयां

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कविता
दुर्दिन

दुर्दिन

” भाई जरा वो वाली साड़ी निकालना ” दुकानदार से यह कहते हुए जिग्नेश अन्य वस्तुओं की खरीद दारी में लग गया। घर से मां का फोन आया था की ” जिगर बबुआ इस बार होली पर जरूर से आ जाओ , बहुत दिन होइ गवा तुमका देखे। हाँ मां उसे प्यार से जिगर ही

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कहानी

Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है

Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है इसके पहले लोग हर प्रश्न का प्रामाणिक जवाब गूगल बाबा से पूँछने में पूरी सुविधा समझते और भरोसा करते थे, Googal भी अपने भीतर की ढेर सारी संग्रहित सामग्री से छाँट कर आपको जिज्ञासा शान्ति उपलब्ध कराता है, वही काम अब Grok

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आलेख
रसाल सिंह 'राही'

ग़ज़ल

ग़ज़ल.. कि उसने बात दिल की ना कही होती हमें भी तो मुहब्बत ही नहीं होती अग़र मैं ज़िन्दगी को ज़िन्दगी लिखता नहीं मुझ से खफा यह ज़िन्दगी होती कभी होता नहीं यह दिल खफ़ा उससे हमारी बात उसने ग़र सुनी होती हमें भाते नहीं हमको सताते जो नहीं उनसे हमें अब दिल लगी होती

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ग़ज़ल

विजय गर्ग की कहानी- भेंट

बूढ़े की श्रद्धा देखकर रंजन साहब भावुक हो उठे। जाने क्यों कोने पड़े उपहारों की ढेरी में सबसे कीमती उपहार गठरी में बंधे ये चावल ही जान पड़े। गठरी भी कैसी बिल्कुल दीन-हीन अवस्था में। एक बारगी लगा जैसे सुदामा आ गए हों कृष्ण की द्वारिका में और कृष्ण ने सुदामा की चावल से भरी

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कहानी

नाजुक मन की उलझनें

विजय गर्ग। जीवन का प्रथम सोपान बचपन स्नेह, प्यार, ममता और नटखटपन में कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता । घर-परिवार में बच्चों की आमद, किलकारी और शरारतें घर के बड़ों को आह्लादित और आनंदित करती हैं। उनके साथ बिताए हुए पलों की अल्बम को जब भी खोला जाए, एक विशेष प्रकार की

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आलेख
इंजी. रत्नेश गुप्ता

पीली बसें

सड़क पर दौड़ती पीली बसें नोनीहालों को ले जाती पीले बसें सड़क पर मौत का तांडव नजर आती पीली बसें बेतारतीब दौड़ती पीली बसें ट्रैफिक नियम को धता बताती पीली बसें सकरी गलियों में दौड़ती पीली बसें

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कविता
देहरादून की बेटी का सम्मान मुम्बई धरती पर हुआ

देहरादून की बेटी का सम्मान मुम्बई धरती पर हुआ

इंकलाब पब्लिकेशन । देहरादून उत्तराखण्ड की बेटी कवयित्री सौ.संतोषी दीक्षित जी का सम्मान श्रीरामजानकी मंदिर खाड़ी नं.3 साकीनाका 90 फुट रोड मुम्बई की धरती पर अंतर्राष्ट्रीय संस्था काव्यसृजन व अखिल भारतीय काव्य मंच के संयुक्त तत्वाधान में किया गया|संस्था द्वय ने शाल श्रीफल व पुष्पगुच्छ से सम्मान किया| उनके सम्मान में संस्था द्वय ने “एक

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साहित्य समाचार
किरण बैरवा

किरण बैरवा की कविताएँ

वो ही तो हूँ मैं   गुजार दिए होंगे दिवस, मास, वर्ष जो एक रात ना कट सके, वो पल ही तो हूँ मैं जाने कितने ही लोगों से कितनी ही दफां की होगी बातें हृदय की सुन सकूॅं, वो शख्स ही तो हूँ मैं जीवन में बिताए है हसीन पल सबके साथ जो कभी

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कविता
मोनिका नौटियाल

हम और बचपन

बचपन की मीठी यादों को हम दिल में लिये चलते हैं | जिस घर में रहा करते थे उस घर को याद किया करते हैं || माँ के हाथो से पिटाई पापा के हाथों से मिठाई | बहिन भाई से लड़ाई उन सभी बातो को याद किया करते हैं || बचपन भी क्या था, न

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

जब तुम इस धरा पर आई थी

जब तुम इस धरा पर आई थी घर में मातम छाया था तुम्हारी दीदी के बाद एक और लड़की घर में आई थी मम्मी के चेहरे पर दबी हुई खुशी थी एक गुड़िया के रूप में उनकी छवि फिर से आई थी पापा के लिए एक नन्ही परी फिर से आई थी रिश्तेदार लोग आए

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

हमारे साथ ऐसा ही होता है

हम लड़के हैं जनाब, हमारे साथ ऐसा ही होता है कोई दहेज एक्ट में फंस जाता है कोई अतुल सुभाष की तरह घुट-घुट के मरता कोई मानव शर्मा की तरह पुरुषों की व्यथा कहता है कोई सौरव राजपूत की तरह ड्रम में कटा और मारा जाता है हम लड़के हैं जनाब, बचपन से घर की

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कविता
राजेश कुमार बौद्ध

ओमप्रकाश वाल्मीकि: हिंदी साहित्य में एक आन्दोलन – राजेश कुमार बौद्ध

राजेश कुमार बौद्ध । सामाजिक पीड़ाएं जब दबती है तो आंसू व सिसकियों में तब्दील हो जाती हैं, यहीं पीड़ाएं जब उभरती है तो जन आन्दोलन का रूप धारण करती है। और जब यही पीड़ाएं शब्दों का रूप लेती है तो साहित्य बन जाती हैं, और ” जूठन ” जैसी कालजयी रचना का जन्म होता

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आलेख
श्रीरामचरित मानस के वो चरित्र जो सबसे हे दृष्टि से देखे जाते हैं

श्रीरामचरित मानस के वो चरित्र जो सबसे हे दृष्टि से देखे जाते हैं –  पं.जमदग्निपुरी

 पं.जमदग्निपुरी। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस विश्व में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है|इस पुस्तक को अनेकानेक लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं|इसी पुस्तक को पढ़कर वैज्ञानिक डॉक्टर व्यास आदि मन माफिक धन अर्जित कर रहे हैं|इसी पुस्तक की कुछ चौपाइयों के अर्थ को अनर्थ बताकर कुछेक मूढ़ नेता गण अपनी दुकान भी चला रहे

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आलेख
मर्यादा व अन्य लघुकथाएं

पुस्तक समीक्षा-मूल्यों के बदलते स्वरूप का प्रस्तुतिकरण है – मर्यादा व अन्य लघुकथाएं

समीक्षक-डॉ वीरेन्द्र भाटी मंगल। हिन्दी व राजस्थानी भाषा के चिर-परिचित साहित्यकार डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा लघुकथा लेखक के रूप में विख्यात है। इनकी नव-प्रकाशित कृति ’मर्यादा व अन्य लघुकथाएं’ एक ऐसा लघुकथा-संग्रह है जो समाज, रिश्तों, नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से उकेरता है। इस पुस्तक में डॉ कच्छावा ने अपनी लेखनी से न

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पुस्तक समीक्षा
पुरुषों पर नारी का एकछत्र साम्राज्य

पुरुषों पर नारी का एकछत्र साम्राज्य

आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार। दुनिया भर के धुरन्धर ज्ञानियों-ध्यानियों, धर्मज्ञ, तत्ववेत्ताओं के होते हुये इस समाज में मुझ जैसा महामूर्ख भी है जो नर और नारी के बीच उनकी छुपी हुई प्रतिभाओं-कलाओं से हटकर नर में छिपी नारी को देखता है। पुरुषों में नारी पुरुषोत्तमा है जो अणिमा,लघिमा सिद्धिया है, प्रकृति में संध्या, ऊषा,

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आलेख
पं.जमदग्निपुरी

फर्क साफ नजर आता है -पं.जमदग्निपुरी

पं.जमदग्निपुरी- पहले हमारे देश भारत में बड़े बड़े अपराधी आतंकवादी बड़े बड़े कांड करके देश से फरार हो जाते थे|वो ऐसे देश में जाते थे,जहाँ से भारत और उस देश से प्रत्यर्पण की संधि नहीं रहती थी|उसी में एक देश अमेरिका भी था|अमेरिका की खास बात यह थी कि वह किसी भी देश के दुर्दांत

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आलेख
डॉ. हरिदास बड़ोदे 'हरिप्रेम' मेहरा

डॉ. हरिदास बड़ोदे ‘हरिप्रेम’ मेहरा की मार्मिक कहानी -अजब प्रेम की गजब कहानी

लेखक की कलम आज केवल अपने वास्तविक जीवन पर ही कुछ लिखने को मजबूर है। अजब प्रेम की गजब कहानी, लेखक की जुबानी और लेखक की कहानी में दिल की गहराई को समझना कोई खेल नहीं है। लेखक के संघर्षमय जीवनकाल के एक संक्षिप्त अंश का वर्णन किया गया है। और यहां एक वास्तविकता के

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कहानी

विजय गर्ग की कहानी: उड़ान

अपनी नईनवेली पत्नी को गांव में छोड़ कर कपिल शहर लौट गया. वहां ज्यादा तनख्वाह की चाह में उस ने मोहिनी के यहां नौकरी कर ली. पर मोहिनी के इरादे तो कुछ और ही थे. कपिल का नईनवेली पत्नी को छोड़ कर ड्यूटी पर जाने का जरा भी मन नहीं था. शादी के लिए उस

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कहानी

भारतीय साहित्य में समकालीन महिलाओं की आवाज़ें

भारतीय साहित्य में महिलाओं की आवाज विविध आख्यानों में योगदान करती है और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देती है। भारत में महिलाओं के लेखन का विकास प्राचीन से समकालीन समय तक फैला हुआ है। यह यात्रा बदलती धारणाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण को दर्शाती है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्राचीन साहित्य प्राचीन भारत में, महिला कवियों और

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आलेख

विजय गर्ग की कहानी: अकेली लड़की

रूबीना का रिजर्वेशन जिस बोगी में था, उसमें लगभग सभी लड़के ही थे । टॉयलेट जाने के बहाने रुबिना पूरी बोगी घूम आई थी, मुश्किल से दो या तीन औरतें होंगी । मन अनजाने भय से काँप सा गया। पहली बार अकेली सफर कर रही थी, इसलिये पहले से ही घबराई हुई थी। अतः खुद

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कहानी
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