marathi kavita status

A solitary silhouette of a man in a jacket gazing at a lake during a peaceful sunset, creating a serene atmosphere.

कारे-जहाँ

कारे-जहाँ1 आजकल इस तरह बन गये, ज़हीन2 ख़तरे में, इबलीस3 मोहतात4 बन गये! ख़ुदा ने बनाया हमें उन्वान5 देकर – “इंसान”, दैर-ओ-काबा6 बनाकर हम क्या से क्या बन गये! सहीफ़ा7 जो दिया नेक बंदे को ख़ुदा ने, जनाब खुद मसीहा, ईबादत के मरकज़8 बन गये! ख़ुदा ही रहा मेरा मुस्तहक9 अजल10 से, ये तो दुनिया […]

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ग़ज़ल
रसाल सिंह 'राही'

मैं और तन्हाई

पसंद बहुत कुछ है मुझको पर चाहिये कुछ नहीं इश्क़ तो है मुझको उनसे पर मैं जताता नहीं मेरे इस दिल में अब क्या है मेरे इस दिल में कौन है यह भी जनता हूँ मैं मग़र हाले दिल सुनाता नहीं उस अजनबी से क्या है मेरा वास्ता क्या है मेरा रिश्ता आखिर कौन है

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कविता

अब तो हो बस आर या पार….. इस कविता ने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दिया , हर हिन्दुस्तानी को यह कविता जरूर पढ़नी चाहिए

कविता – है हर दिल की यही पुकार,अब तो हो बस आर या पार….. थी जो हरियाली से भरी, हमारी पावन धरती कभी, इन नापाक इरादों ने कर दिया इसे है खून से लाल! हर दिल धड़क रहा था, सुकून से इस धरा पर यारों, है आज बेचैन हर घर परिवार, इस धरती का लाल!

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कविता

हिन्दी दोहे- उदित करो शुभ कर्म

राना कहता आपसे,उदित करो शुभ कर्म। इसके पहले आपको,पड़े निभाना धर्म। हर कामों के धर्म हैं,जिनको कहें उसूल। राना होते है उदित,उसी तर्ज पर फूल।।   अंतराल से मित्र जब,आकर दे सम्मान। आज उदित कैसे हुए,हँसता राना आन।। अस्ताचल के बाद ही,सदा उदित हो भान। राना यह संसार का,सबसे सुंदर गान।।   अब गुदड़ी के

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कविता

हार मुझे कभी स्वीकार नहीं

समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया यही वजह रही, समय बार बार मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई जब जब उसने तोड़ा, तब तब मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया फिर उम्र भी मेरे आगे

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कविता

मन

जुड ही जाता हूँ किसी ना किसी रूप में उससे निहित है सकल जीवन का सार व भावों का सागर जिससे यादों की बारात लेकर कुछ अनकही बातों की यादें संजोकर नाचतें हुए स्मृतियाँ भी उसके अभावों में जैसे मन के मधुर पथ पर मंगल गीत गाती हो सकल तारामंडल भी दमकते हुए आलोक से

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कविता

भक्ति गीत- कभी तो कृपा करेंगे नाथ

(भक्ति-गीत: आत्मा से परमात्मा की यात्रा)मैं अपनी निम्न मौलिक व स्वरचित रचना आपके विचार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।यह भक्ति गीत एक तरह से एक अंतर्यात्रा की तरह है । आप भी डूबिये इसमें ) कभी तो हाथ धरेंगें नाथ, कभी तो कृपा करेंगे नाथ, इन साँसों में धड़केंगे नाथ, हमारे मन थिरकेंगें

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कविता

सारे जग के सच्चे बच्चे

सारे जग के सच्चे बच्चे , होते मन के सच्चे बच्चे , बड़े हीं नटखट होते बच्चे , बड़े हीं शरारत होते बच्चे , सारे जग के सच्चे बच्चे । मन लगाकर पढ़ते सारे बच्चे , जिद्दी से बाज नहीं आते बच्चे , शरारती से बाज नहीं आते बच्चे, खुब करते पढ़ाई , जग के

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कविता

जीवन पथ

जीवन की परिभाषा सुन | आँखे हुई नम ,छलकी जलधारा || पग के कंटक छू कर | मन में एक आस भर आई || न विचलित हो पाऊ कभी मैं | पग पग संभल जाऊ चलू मैं एक नई डगर || दूर बादलो की छाँव में | देखूँ सूरज की उजली किरण || न ठंडी

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कविता

पुस्तक और हम

पुस्तक दिवस विश्व पुस्तक दिवस आया है। पाठकों को मन को लुभाया है।। रस छंद अलंकार। जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।। साहित्य को मन ही मन। गुन और मनन कर रहे हैं।। आगे क्या होगा? इस सोच रहे हैं ।। संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं। हम सभी को यह भाव वह विभोर

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कविता

चाहत के मोती

कुछ चाहत के मोती चुन अपनी झोली मैं भर लूँ I और ढूब जाऊ ख्वाइशों के समंदर में कुछ मोती मैं चुन लू II चुन चुन कर पिरोऊ उन मोती को हकीकत की माला में I पहना दूँ ढूंडकर अपने अस्तित्व को ये मोती की माला मैं II लहराऊं आकाश में बन पक्षी चहचहाऊ मैं

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कविता

प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

कवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले

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कविता

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में

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कविता

प्रतीक्षा

तेरी प्रतीक्षा में सजनि क्षण – क्षण बीतत जाए । पंथ निहारत थके नयन आशा – गागरि रीतत जाए ।। पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी और सुहानी रात ढ़ल चुकी । दिशा बदल चुकी पवन भी काल – गति कितनी बदल चुकी।। आए – गए मौसम यहॉं कई प्रियतम तुम नहीं आए । पंथ निहारत

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कविता

शहादत के सूरज

शहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते

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कविता

चांद रात

हर तरफ थी रौशनी हर तरफ था उजाला एक  मेरे ही  घर अंधेरा  था चांद रात को गुल खिल गई थी कली मुस्करा रही थी एक मैं ही उदास  बैठा था चांद रात को मैं तुम्हारी जिंदगी की सलामती के लिए बाबर तुम्हारा सदाका  निकाल रहा था चांद रात को तेरे बगैर कैसी होगी इस

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ग़ज़ल

कल्पनाओं का वृक्ष

मन की भूमि पर अंकुरित हुआ एक नन्हा पौधा कितना कोमल,कितना प्यार,कितना सुंदर है ये पौधा जड़े गहरी, तना मजबूत, टहनियां झूल रही है मदमस्त सी परिश्रम की बूंदों से हर क्षण बढ़ रहा है ये पौधा एक दूजे को साथ लेकर बढ़ रही है टहनियां पाकर प्रीत हवा का झोंका झूम रही है टहनियां

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कविता
निर्मेष

नदियों का उधार

कस्बे के कोलाहल से दूर सिवान था सुदूर काम से लौटते मजदूर पर तुमसे मिलने का सुरूर I सुहानी सुरमयी शाम आज भी है याद तेजी से ढलती शाम चाँदनी आने को करती फ़रियाद I हमारे मिलन ने उसे रोक रखा था उसने तारों का वास्ता दिया उदास मैंने तुमको विदा किया। समय पंख लगा

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कविता

मैंने लिखा इसलिए नहीं….

लिखना चाहता अगर समाज को, मैं तो, लिख देता सारे अच्छाइयों को कुछ चंद आधे पन्ने पर तनिक सा स्याही समाप्त होता बस, क्योंकि, बहुत कम है अच्छाई इस समाज में… लिखा इसलिए नहीं, क्योंकि पल भर में ही समाप्त हो जाते पन्ने और स्याही मेरे अगर करता मैं वर्णन बुराईयों का, शायद बहुत बुराइयां

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

पीली बसें

सड़क पर दौड़ती पीली बसें नोनीहालों को ले जाती पीले बसें सड़क पर मौत का तांडव नजर आती पीली बसें बेतारतीब दौड़ती पीली बसें ट्रैफिक नियम को धता बताती पीली बसें सकरी गलियों में दौड़ती पीली बसें

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कविता
किरण बैरवा

किरण बैरवा की कविताएँ

वो ही तो हूँ मैं   गुजार दिए होंगे दिवस, मास, वर्ष जो एक रात ना कट सके, वो पल ही तो हूँ मैं जाने कितने ही लोगों से कितनी ही दफां की होगी बातें हृदय की सुन सकूॅं, वो शख्स ही तो हूँ मैं जीवन में बिताए है हसीन पल सबके साथ जो कभी

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कविता
मोनिका नौटियाल

हम और बचपन

बचपन की मीठी यादों को हम दिल में लिये चलते हैं | जिस घर में रहा करते थे उस घर को याद किया करते हैं || माँ के हाथो से पिटाई पापा के हाथों से मिठाई | बहिन भाई से लड़ाई उन सभी बातो को याद किया करते हैं || बचपन भी क्या था, न

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

जब तुम इस धरा पर आई थी

जब तुम इस धरा पर आई थी घर में मातम छाया था तुम्हारी दीदी के बाद एक और लड़की घर में आई थी मम्मी के चेहरे पर दबी हुई खुशी थी एक गुड़िया के रूप में उनकी छवि फिर से आई थी पापा के लिए एक नन्ही परी फिर से आई थी रिश्तेदार लोग आए

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कविता
इंजी. रत्नेश गुप्ता

हमारे साथ ऐसा ही होता है

हम लड़के हैं जनाब, हमारे साथ ऐसा ही होता है कोई दहेज एक्ट में फंस जाता है कोई अतुल सुभाष की तरह घुट-घुट के मरता कोई मानव शर्मा की तरह पुरुषों की व्यथा कहता है कोई सौरव राजपूत की तरह ड्रम में कटा और मारा जाता है हम लड़के हैं जनाब, बचपन से घर की

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कविता

तीरगी मिटेगी उजाला भी आएगा

“ये तीरगी मिटेगी उजाला भी आएगा यानी कि कामयाबी भरा सवेरा भी आएगा राहों की मुश्किलों सें हार मत मानना, तेरी मंज़िल मिलेगी मिलने का मज़ा भी आएगा l”

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कविता

पधारे श्री राम प्रभु द्वारे हमारे

जय श्री राम 🙏 🙏 खुल गए भाग्य हमारे पधारे श्री राम ,द्वारे हमारे अंगना रंगोली सजाओ हर घर में दीप जलाओ हर घर भगवा लहराओ करो स्वागत श्री राम प्रभु का भाग्य सब अपने जगाओ खुल गए भाग्य हमारे पधारे श्री राम प्रभु द्वारे हमारे बच्चे, बूढ़े,युवा सभी राम राम गुण गाओ खिल जाए

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कविता

अतिथि सत्कार

कार्यक्रम में आये अतिथि का सत्कार है , फूल और गुलदस्ता से अतिथि का सत्कार है , हर क्षण , हर पल आये अतिथि का सत्कार है , चाय , नाश्ता , कॉफी से अतिथि का सत्कार है , कार्यक्रम में आये हुए अतिथि का सत्कार है । सॉल और चादर ओढ़ाकर अतिथि का सत्कार

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कविता

आज का समाज

आज का समाज चमकते स्क्रीन के पीछे, चेहरे छिपे हैं, सपनों के पीछे भागते, रिश्ते सिमटे हैं। शोर में डूबी चुप्पी, सच का आलम खोया, इंसानियत का आलम, बस किताबों में सोया। सड़कों पर भीड़ है, पर दिल हैं सुनसान, हर कदम पर सवाल, कहाँ गया इंसान? प्रगति की राह में, मूल्य पीछे छूटे, गर्व

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कविता

निरंजना डांगे की कविता – माता के कालरात्रि स्वरूप की महिमा

रग रग में आस्था भरे भक्ति ज्योत हृदय जले करे पूजन माता के नौ रूपो का मन में श्रद्धा सुमन पुष्प लिए नव रंग ,नव रूप, नव साज लिए मन में उमंग और हृदय उल्लास लिए सुने हम गाथा माता की मन में विश्वास लिए ये है गाथा मां दुर्गा की नव स्वरूपों की नाम

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कविता

पवन सुरोलिया “उपासक” की कविता – जरा ठहर जा जिंदगी……..!!

जरा ठहर ज्या ऐ जिंदगी, क्यूं भग रही है! जरा सुस्ता लेे, थकी सी लग रही है! क्यूं कर रही है जिद्द उम्र से……. जरा ख्याल रख अपना, उम्र भी ढल रही है!! तकाजा ए उम्र अब कुछ, मुनासिब नहीं है! चाहता है जिसको तूं वो, अब करीब नहीं है! उतर रही है ढलान में

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कविता

डॉ.राजीव डोगरा की कविता -आओ स्कूल चले

आओ हम स्कूल चले नव भारत का निर्माण करें। छूट गया है जो बंधन भव का आओ मिलकर उसको पार करें, आओ हम स्कूल चले ….. जाकर स्कूल हम गुरुओं का मान करें बड़े बूढ़ों का कभी न हम अपमान करें, आओ हम स्कूल चले……. जाकर स्कूल हम दिल लगाकर पढ़ेंगे मौज मस्ती और खेलकूद

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कविता

कुछ अनकही सी बाते

कुछ अनकही सी बाते है कुछ खामोश सी ये राते है है अजीब सी बेचैनी दिल में कैसी ये उलझती हुई सी राते है नींद कोसों दूर हुई चकोर की इन नयनों से जब जहन् ये ख्याल आया उसका चांद है चंदानी की आगोश मे अधरों पर खामोशी है और अंखियों में नीर धारा सरिता

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कविता
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