April 2025

Detailed image of the sun showcasing its fiery surface and glowing edges.

जीवन प्रत्याशा पर तपिश की मार- विजय गर्ग

देश इन दिनों हीटवेव की चपेट में है, जिसकी तीव्रता लगातार बढ़ती जा रही है। क्लाईमामीटर की नई रिपोर्ट के अनुसार, 1950 से अब तक की तुलना में वर्तमान हीटवेव औसतन चार डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो चुकी है। यह अंतर यूरोपीय मौसम एजेंसी कापरनिक्स के आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया है। अध्ययन में […]

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आलेख
रसाल सिंह 'राही'

निस्वार्थ प्रेम

किसी के लिए हम जरूरी हैं तो किसी के लिए जरूरत कभी कभी ये सब समझने में सदियां लग जाती हैं कि क्या सही है और क्या गलत है कौन अपना है और कौन पराया है अपनी अमूल्य भावनाओं को ऐसी जगह खर्च करो यहां भावनाओं की क़द्र हो आपके कहे हुए शब्दों से किसी

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कविता
A close-up of a colorful clown doll with a sad expression lying in a woven basket.

सुख में दुख – विजय गर्ग

आज भी यह रहस्य ही लगता है कि कुछ लोग किसी की सराहना या प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों करते हैं! किसी के लिए प्रशंसा के दो शब्द बोलना उन्हें दो कुंतल वजन उठाने से भी ज्यादा भारी क्यों लगता है ? ऐसे लोगों से जल्दी किसी की प्रशंसा नहीं होती और औपचारिकतावश करनी पड़

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आलेख

गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं

गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं। आह भरता मगर गुनगुनाता नहीं।। खेत में कंकरीटों की उगती फसल । धान गेहूं कोई अब उगाता नहीं।। शब्द सोहर के जाने कहां खो गए । अब ये बिरहा पराती सुनाता नहीं।। अजनबी बन गए गांव के लोग भी। कोई भी अपने सर को झुकाता नहीं।। भावनाएं अहिल्या हैं

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ग़ज़ल

लक्ष्य में तन्मयता

मन बड़ा शक्तिवान है परन्तु बड़ा चञ्चल । इसलिए उसकी समस्त शक्तियाँ छितरी रहती हैं और इसलिए मनुष्य सफलता को आसानी से नहीं पा लेता। सफलता के दर्शन उसी समय होते हैं, जब मन अपनी वृत्तियों को छोड़कर किसी एक वृत्ति पर केन्द्रित हो जाता है, उसके अलावा और कुछ उसके आमने-सामने और पास रहती

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आलेख
pahalgam book cover

लहू में रंगी वादियाँ पहलगाम (साझा काव्य – संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य

रचना भेजने की अंतिम तिथि – 10 मई 2025 बुक रिलीज – 10 जून 2025 लहू में रंगी वादियाँ पहलगाम (साझा काव्य – संग्रह) में प्रकाशनार्थ पहलगाम आतंकी हमले पर आधारित 2 काव्य रचनाएँ सादर आमंत्रित है । रचना के साथ आप अपना पूरा नाम, पूरा डाक पता , फोन नंबर , आपकी एक फोटो

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साहित्य समाचार

 हूँ हर पल साथ उसके, और आईने में तलाश रही….

है प्यार दिल में उसके मेरे, उसकी आँखें बता रही, कर रही है इनकार, पर दिल उसकी गवाही दे रही, जाऊँ जब सामने उसके मैं,छुप कर वो देखती रही! उसकी आँखों से लगे, है ख़्वाब मेरा ही देख रही! खुले केश तो लगे, जैसे आ गए काले बादल अभी, उसकी झील सी आँखें लगे, है

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कविता

पुरानी पेंशन

पुरानी पेंशन है सपना प्यारा, रिटायरमेंट में जीवन सहारा। अब आई नयी कहानी, एनपीएस की सुनो जुबानी। कहते हैं — “जमा करो बस पैसे, भविष्य बनेगा आपके जैसे!” फिर शेयर बाजार में झूला झूलो, कभी डूबो, कभी फलो-फूलो! यूपीएस भी खूब मजेदार, नाम बड़ा और दर्शन बेकार। कागज़ी घोड़े, दौड़ते दिन-रात, कर्मचारी दुखी होकर कहते

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कविता

समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा है

बहुत उजाला होने लगा है अपने इस आशियाने में, रखे हुए हैं कुछ जुगनू चलो जंगल में छोड़ आते हैं! समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा  है *प्रताप* यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं! प्यार मोहब्बत की बातें सब करते रहते हैं ज़िन्दगी में, क्यों न किसी अजनबी को भी चलो हम हंसा देते

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कविता

ये हम कहां दिल लगा बैठे……..

इश्क में हम ये क्या कर बैठे,ये हम कहां दिल लगा बैठे…….. इश्क में हम ये क्या कर बैठे, ये हम कहां दिल लगा बैठे!   ये क्या गुनाह कर बैठे, न जाने क्या हुआ दिल लगा बैठे, इश्क में हम ये क्या कर बैठे, ये हम कहां दिल लगा बैठे! हर दिन हर पल, यूं ही फिजाओं में घूमा करते थे 

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कविता

  है ख्वाहिश दिल की रहना तुम मेरे दिल में……

सफ़र कलम से,          “है ख्वाहिश दिल की,                         रहना तुम मेरे दिल में……   तुम जो हो मेरी ज़िन्दगी, हो मेरे दिल की तमन्ना भी, तुम ही हो मेरे बरसों की चाहत, मेरा दिल जुनून भी! रहते हो पास मेरे, फ़िर भी है ढूंढ़ती नज़रें मेरी तुम्हें, हो जाते ग़र मुझसे दूर, सपनों में भी दिल

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कविता

भारत देश महान है

।।भारत देश महान है।। उत्तर में हिमकिरीट सलोना दक्षिण में सागर धार है गंगा-यमुना से सिंचित भूमि की महिमा अपरंपार है ||1|| पूरब की है अरुणित धरती पश्चिम को बहती रेवा विशाल है मध्य भूमि पर शोभित मालवा अवंति बसे महाकाल हैं ||2|| भगत सिंह के लहू से सींचा गाँधी के सपनों का देश है

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कविता
निर्मेष

दायित्व

मैंने अपना बैग रखने के पहले ही टीवी ऑन कर दिया था। पहलगाम हमले के बाद से लगभग रोज का यही हाल था। तभी सात वर्षीया गुनगुन ने आकर मेरा बैग खोला कि शायद उसके लिए नित्य की भांति कुछ खाने-पीने का सामान उसके लिए उसमे होगा मगर कुछ न पाकर थोड़ी नाराज होते हुए

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कहानी

यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं..

बहुत उजाला होने लगा है अपने इस आशियाने में, रखे हुए हैं कुछ जुगनू चलो जंगल में छोड़ आते हैं! समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा है *प्रताप* यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं! प्यार मोहब्बत की बातें सब करते रहते हैं ज़िन्दगी में, क्यों न किसी अजनबी को भी

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कविता

क्या हो गयी धरा राम की..?

इनका नाम डॉo ब्रजेश बर्णवाल है। इनका जन्म 10 जून 1993 को हुआ था। ये अशोक बर्णवाल एवं यशोदा देवी के संतान हैं। ये झारखण्ड राज्य के गिरिडीह में स्थित सिंघो गांव के निवासी हैं। इन्होंने सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातक, स्नातकोत्तर(गोल्ड मैडलिस्ट ), कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से शिक्षा स्नातक व ग्लोबल

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कविता

अपने झील सी आँखों और दिल में बसा रखी हो………

अपने झील सी आँखों और दिल में बसा रखी हो……… यूँ लगे अंधेरे को चीरती उजाला,चाँद की किरणें हो! अपने झील सी आँखों में,और दिल में बसा रखी हो, है हर ग़म को भुला देती, लगे मधुर राग की घुन हो, हैं शब्द मीठे मिश्री से, होंठ लगे रंगे गुलाबों सी हो! जब करती बातें

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कविता
A solitary silhouette of a man in a jacket gazing at a lake during a peaceful sunset, creating a serene atmosphere.

कारे-जहाँ

कारे-जहाँ1 आजकल इस तरह बन गये, ज़हीन2 ख़तरे में, इबलीस3 मोहतात4 बन गये! ख़ुदा ने बनाया हमें उन्वान5 देकर – “इंसान”, दैर-ओ-काबा6 बनाकर हम क्या से क्या बन गये! सहीफ़ा7 जो दिया नेक बंदे को ख़ुदा ने, जनाब खुद मसीहा, ईबादत के मरकज़8 बन गये! ख़ुदा ही रहा मेरा मुस्तहक9 अजल10 से, ये तो दुनिया

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ग़ज़ल
रसाल सिंह 'राही'

मैं और तन्हाई

पसंद बहुत कुछ है मुझको पर चाहिये कुछ नहीं इश्क़ तो है मुझको उनसे पर मैं जताता नहीं मेरे इस दिल में अब क्या है मेरे इस दिल में कौन है यह भी जनता हूँ मैं मग़र हाले दिल सुनाता नहीं उस अजनबी से क्या है मेरा वास्ता क्या है मेरा रिश्ता आखिर कौन है

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कविता

पहलगाम : भर लो लहू में उबाल आज स्वराष्ट्र है पुकार रहा

हिन्द के नौजवानों आज हिंद है पुकार रहा भर लो लहू में उबाल आज स्वराष्ट्र है पुकार रहा खामोशी ये तोड़ सिंघ नाद बन गरजिए देश के शत्रुओं को शक्ति प्रबल ,अपनी दिखाइए खोए नन्हे पुष्प हमने नौजवान भी खोए कई बहनों की मांग चीखी नन्हें मुख से चीखे गूंजी चीखों को उन मासूमों की

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कविता

कविता – इंसानियत का अंत

धरा हिली, गगन रोया, लहू से भीगा पथ, पहलगाँव की वादियों में फैला आतंक रथ। भोले-भाले तीर्थ यात्री, श्रद्धा जिनकी शान, धर्म पूछ कर मार दिए, कैसा यह अपमान? काश्मीर की पावन धरती, फिर से पूछे सवाल, क्या ऐसे होंगे सपूत, जो बनें काल का भाल? काँप उठे ये दुश्मन सारे, जिनका धर्म है पाप,

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कविता

पहलगांव

मां भारती पुकारती उठो रे सूर साहसी। ना रहो तुम तुष्णीम् चुप्पी अपनी तोड़ दो जो उठाए धर्म पर शस्त्र पाद हस्त तोड़ दो। भारती पुकारती उठो रे सूर साहसी जो करे ये दुस्साहस शस्त्र उस पर वार दो भारती का नाम लेकर घर में जाके मार दो। भारती पुकारती उठो रे सूर साहसी उठो

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कविता

ज्यादा नहीं ये बस दो चार दिन तक चलेगा

ज्यादा नहीं ये बस दो चार दिन तक चलेगा ये पुलवामा 2.o है कुछ और दिन तक चलेगा गयी है जान बहुत सारे मासुम लोगों की ये अवाम का खून बस कुछ दिन तक खौला रहेगा करते रहेंगे ये सियासत दान सियासत हादसों पर भी! ये हादसा इनके चुनाव के प्रचार खत्म होने तक चलेगा

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कविता

डॉ सत्येन्द्र कुमार की कहानी – गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं

संत फरीद अत्यंत ही सरल, प्रखर ज्ञानी, प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। कहते हैं जागृत अवस्था में ही वे प्रभु से सीधा वार्तालाप कर लेते थे। उनके अनेकों शिशु हुए जो ज्ञानी और पहुंचे हुए थे। एक बार एक प्रिय शिष्य गुरु संत फरीद से सीधा सवाल कर दिया, महात्मन, आप इतने प्रकांड ज्ञान और मानव रहस्यों

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कहानी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अशरफ अली की स्मृति में कविसम्मेलन हुआ

टीकमगढ़//स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अशरफ अली शाह की स्मृति में नगर भवन पैलेस टीकमगढ़ में एक कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रभारी डी.ईओ. श्री परासर ने की एवंमुख्य अतिथि के रूप में टीकमगढ़ विधायक श्री यादवेन्द्र सिंह बुन्देला एवं नगरपालिका अध्यक्ष श्री अब्दूल गफ्फार जी (पप्पू मलिक) रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप म.प्र.लेखक

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साहित्य समाचार

‘राना लिधौरी’ के ब्लाग पाठक व्यू संख्या दो़ लाख से अधिक पहुँची टीकमगढ़ जिले के उभरते हुए ब्लाॅगर

टीकमगढ़/ बुन्देलखण्ड के ख्यातिप्राप्त कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी की के ब्लाग पाठक व्यू संख्या आज दो लाख को पार कर गयी है अब तक उनके 91 देशों के 200083 पाठक है एवं सोशल मीडिया पर पाँच लाख से अधिक पाठक हैं उनके ब्लाग *राजीवरानालिधौरीब्लाग स्पाट डाॅट काम *(Blog – rajeevranalidhori.blogspot.com)* को बहुत पसंद किया

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साहित्य समाचार

हाइकु कविता

‘राना लिधौरी’ के #हाइकु:- (1) दुष्ट लोग तो, सदा कमी देखते। दूसरों में ही।। *** (2) दुख देखके सदा ही खुश होते। दूसरों में ही।। *** (3) खुद के दोष दूसरों में ही झाँके। खुद को आं आँके।। *** हाइकुकार- राजीव नामदेव “राना लिधौरी” संपादक “आकांक्षा” पत्रिका संपादक- ‘#अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका जिलाध्यक्ष म.प्र.

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कविता

अब तो हो बस आर या पार….. इस कविता ने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दिया , हर हिन्दुस्तानी को यह कविता जरूर पढ़नी चाहिए

कविता – है हर दिल की यही पुकार,अब तो हो बस आर या पार….. थी जो हरियाली से भरी, हमारी पावन धरती कभी, इन नापाक इरादों ने कर दिया इसे है खून से लाल! हर दिल धड़क रहा था, सुकून से इस धरा पर यारों, है आज बेचैन हर घर परिवार, इस धरती का लाल!

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कविता

विजय गर्ग की मशहूर कहानी- बुजदिल एक बार आप भी अवश्य पढ़ें

कलावती के पत्नी बन कर उस की जिंदगी में आने के बाद क्या उस की किस्मत ने भी करवट ली थी या सचाई कुछ और ही थी? सुंदर के मन में ऐसी कशमकश पहले शायद कभी भी नहीं हुई थी. वह अपने ही खयालों में उलझ कर रह गया था. सुंदर बचपन से ही यह

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कहानी
किरण बैरवा

अश्रु रोके रुके नहीं – पहलगाम आतंकी हमले पर ये क्या लिख दिया मशहूर कवयित्री किरण बैरवा ने जो भी पढ़ा रो दिया आप भी पढ़ें

कविता – अश्रु रोके रुके नहीं भू अम्बर भी शर्मसार हुआ ये कैसा हमलावार हुआ बेजान शव रखा गोद में अश्रु रोके रुके नहीं छटपटा रहा तन मन जिसका अर्थ न कुछ रह जाता मौन हो गई प्रकृति जिसकी कश्मीर जो कहलाता   उठो तुम बताओ सबको सुकून कैसे खो गया हिंदू मुस्लिम के नाम

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कविता

मिलन जुदाई और ख़ुशबू की शायरा परवीन शाकिर

-डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री बिहार में दरभंगा के पास चंदन पट्टी नाम का एक गांव है,जहां परवीन शाकिर का कुंबा रहता था.भारत-पाक विभाजन के पहले उनके पिता रोज़गार की तलाश में कराची चले गए जहां 24 नवंबर 1953 को परवीन की पैदाइश हुई.ख़ुदा ने उन्हें वह सब कुछ दिया था, जिसकी एक लड़की सपने देखती

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आलेख
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डा. ज़ियाउर रहमान जाफ़री की 10 ग़ज़लें

ग़ज़लें ——— -डा. ज़ियाउर रहमान जाफ़री ( 1) तुम्हारे सब गिले अच्छे नहीं हैं मुकम्मल तज़किरे अच्छे नहीं हैं बता कर सब हक़ीक़त रख रहे हैं कहीं से आईने अच्छे नहीं हैं शिकायत मुझसे ही होती रही है मगर वो भी बड़े अच्छे नहीं हैं अंधेरों की रही है बस शिकायत जो जलते हैं दिये

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ग़ज़ल

पहलगाम हादसा

कभी सोचा नहीं था कश्मीर की वादियों में ऐसा माहौल बनेगा ऐसा ख़ौफ़नाक मंज़र ऐसा दर्दनाक हादसा देखने को मिलेगा जिससे सबकी रूह कांप उठी है जिस तरह से लग रहा था कि कश्मीर के हालात बेहतर हो गये हैं मग़र यह सब देखकर लगता है कि ऐसा नहीं हुआ और अब ऐसा लग रहा

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आलेख

हिन्दी दोहे- उदित करो शुभ कर्म

राना कहता आपसे,उदित करो शुभ कर्म। इसके पहले आपको,पड़े निभाना धर्म। हर कामों के धर्म हैं,जिनको कहें उसूल। राना होते है उदित,उसी तर्ज पर फूल।।   अंतराल से मित्र जब,आकर दे सम्मान। आज उदित कैसे हुए,हँसता राना आन।। अस्ताचल के बाद ही,सदा उदित हो भान। राना यह संसार का,सबसे सुंदर गान।।   अब गुदड़ी के

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कविता

कहानी:  अजनबी खिड़की

रेखा को वो पुराना घर किराए पर मिला था—शहर की हलचल से थोड़ा दूर, शांत और पेड़ों से घिरा हुआ। एक लेखक के लिए इससे अच्छी जगह क्या होती? एकांत, शांति और समय। घर में सब कुछ ठीक था, बस ऊपर की एक खिड़की अजीब लगती थी। वो खिड़की बाहर की ओर खुलती थी, लेकिन

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कहानी

युद्ध का बिगुल बजाओ

हम ही राम भी है जपते हम ही कृष्ण भी है जपते हम जपते हैं विष्णु हम ही शिव भी जपते   हम हिन्दू है शिव को भी है पूजते शिव है प्रलयकारी शिव है तांडव भी करते जब जब कोई अधर्म बड़े शिव नेत्र अपना तीसरा खोल वध उनका है करते   यही है

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कविता

पहलगाम आतंकी हमला

पहलगाम आतंकी हमला🥹🥹 सभी निर्दोष लोगों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏 अम्बर की गर्जना किंचित लगी रुद्र करुण स्वर के आगे देख खून से लथपत मासूमियत को बेजान धरा भी आलाप कर रही ईश्वर के आगे धर्म अधर्म का कैसा ये यहां खेल रच गया तूने सबको एक बनाया फिर मानव कैसे धर्म में बट गया

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कविता
निर्मेष

खोलो द्वार सीमाओं का

पहलगाम का सामूहिक ये भीषण नरसंहार, मांग रहा अपनो से ही अब अपनो का हिसाब। उनकी साफगोईयों का ये कैसा उनको सिला मिला , खामोश सिंह को कहि कायर तो नहीं समझ लिया। निकले निहत्थे वे सब थे जन्नत की एक सैर को , उनकी कब्रगाह बना दिया तूने ही उस जन्नत को। कभी सोचता

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कविता

दास्तान-ए-एहबाब

दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है

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ग़ज़ल

हार मुझे कभी स्वीकार नहीं

समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया यही वजह रही, समय बार बार मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई जब जब उसने तोड़ा, तब तब मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया फिर उम्र भी मेरे आगे

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कविता
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